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________________ बलदोटा लगभग ७५ एकड़ भूमि में है। इनमें हजारों मोसम्मी के साद है। इन झाड़ों से पैदा होने वाली मोसम्मी की सैकड़ों बैगन बम्बई, गुजरात भादि प्रान्तों में भेजी जाती हैं। इधर आपने लेमनज्यूस तथा अरेंजज्यूस बड़े प्रमाण में बनाने का आयोजन किया है और इस कार्य के लिये १५ एकड़ भूमि में नीबू के हजारों झाड लगाये हैं। इन तमाम कार्यों में आपके साथ आपके बड़े पुत्र बंशीलालजी सिंघी परिश्रम पूर्वक सहयोग लेते हैं । आपका फलों का बगीचा बम्बई प्रांत में सबसे बड़ा माना जाता है। सेठ माणिकचन्दजी के इस समय बंशीलालजी, शिवलालजी तथा शांतिलालजी नामक ३ पुत्र हैं। सिंबी बंशीलालजी का जन्म संवत् १९६५ में हुआ। आपने लेमन तथा अरेंज ज्यूस के लिये पूना एग्रीकलचर कॉलेज से विशेष ज्ञान प्राप्त किया है। आप बड़े सजन व्यक्ति हैं। आपके छोटे भाई शिवलालजी पूना एग्रीकलचर कॉलेज में केमिस्ट का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। सिंघी पन्नालालजी भी बरखेड़ी में बागायात का व्यापार करते हैं । आपके पुत्र मिश्रीलालजी, चम्पालालजी, इन्द्रचंदजी, हरकचंदजी तथा भागचंदजी हैं। इसी प्रकार पूनमचंदजी अमलनेर में व्यापार करते हैं और दलीचंदजी बरखेड़ी में तथा रतनचंदजी और रामचंद्रजी उत्तराण में कृषि कार्य करते हैं । इसी प्रकार इस परिवार में सेठ चुन्नीलालजी सिंघी के पुत्र मोहनलालजी, वृजलालजी, झूमरलालजी तथा उत्तमचंदजी और छोटमलजी के पुत्र कन्हैयालालजी और नंदलालजी उत्तराण में कृषि कार्य करते हैं। सेठ उम्मेदमल रूपचंद बलदोटा, दौंड (पूना) इस परिवार का मूल निवास स्थान बारवा (आऊना के पास ) मारवाड़ में हैं। इस परिवार के पूर्वज सेठ गंगारामजी बलदोटा, मारवाड़ से व्यापार के लिए लगभग ६० साल पूर्व नीमगाँव ( अहमदनगर ) आये। तथा वहाँ किराना का धंधा शुरू किया। संवत् १९५० के लगभग आप स्वर्ग: वासी हए। आपके चार पुत्र हुए, जिनमें उम्मेदमलजी का परिवार विद्यमान है। सेठ उम्मेदमलजी ने संवत् १९६० में अपनी दुकान दौंड में की और व्यापार की आपके हाथों से उन्नति हुई। संवत् १९७२ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र रूपचन्दजी (उर्फ फूलचन्दजी) का जन्म १९४२ में मोहनलालजी का संवत् १९५७ में एवं राजमलजी का संवत् १९६६ में हुभा। इस समय बलदोटा रूपचन्दजी, अपनी उम्मेदमल रूपचन्द नामक दुकान का कार्य दौंड में संचालित करते हैं। आपके पुत्र श्री हरलालजी हैं। श्री मोहनलालजी बलदोटा ने सन् १९२० में बी० ए० तथा १९२२ में एडवोकेट परीक्षा पास की। सन् १९२३ से आप पूना में प्रेक्टिस करते हैं, एवं यहाँ के प्रतिष्ठित वकील माने जाते हैं। आप ४ सालों तक स्थानीय स्था० बोडिंग के सेक्रेटरी रहे थे। अापके छोटे बन्धु राजमलजी बलदोटा ने सन् १९३२ में बी. एस. सी० की परीक्षा पास की। तथा इस समय पूना लॉ कालेज में एल, एल० बी० में अध्यपन कर रहे हैं। हरलालजी बलदोटा का जन्म सन् १९11 में हुआ। आपने सन् १९२९ में मेट्रिक पास किया तथा इस समय पना मेडिकल स्कूल के द्वितीय वर्ष में अध्ययन कर रहे हैं। इस परिवार ने शिक्षा तथा सुधार के कार्यों में प्रशंषनीय पैर बढ़ाया है। श्रीयुत राजमलजी और हरलालजी बलदोटाने परदा प्रथा को त्याग कर महाराष्ट्र प्रदेश के ओसवाल समाज के सम्मुख एक नवीन आदर्श उपस्थित किया है। आप दोनों युवक अपनी पत्नियों सहित शुद्ध खद्दर का व्यवहार करते १२५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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