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________________ सुराणा सठ उगरचन्दजी का परिवार-सेठ उगरचन्दजी सीधे सादे और धार्मिक प्रकृति के पुरुष थे। आप चुरू से व्यापार के निमित्त कलकत्ता आये थे। मगर प्रायः आप देश में ही रहा करते थे। आपका स्वर्गवास होगया है। आपने रतीरामजी के पुत्र धनराजजी को अपने नाम पर बत्तक लिया। सेठ धनराजजी भी साधारण स्थिति में न्यापार करते रहे। आपका भी स्वर्गवास होमया है। आपके स्वर्गवास के पश्चात् आपकी धर्मपत्नी सिरेकुंवरजी तथा आपके पुत्र श्री सोहनलालजी ने जैन धर्म के तेरापन्थी सम्प्रदाय में दीक्षा ग्रहण करली। श्रीमती सिरेकुँवस्जी का स्वर्गवास होगया है। श्री सोहनलाब्जी इस सम्प्रदाय में संस्कृत के विद्वान तथा शास्त्रों का अच्छा हान रखते हैं। .... सेठ रतीरामजी का परिवार-आप भी देश से कलकत्ता न्यापार निमित्त आये थे। आपने सर्व प्रथम दलाली का काम प्रारंभ किया था। कुछ समय पश्चात् आप अपने भाइयों से अलग होकर अपना स्वतन्त्र व्यापार करने लगे थे। तभी से आपके परिवार के सज्जन अलग व्यवसाय करते हैं। आपके सुगनचन्दजी, धनराजजी, खूबचन्दजी तथा हजारीमलजी नामक १ पुत्र हुए। पहले पहल आपने मेसर्स बन्द हजारीमल के नाम से धोती जोडों का काम शुरू किया। इस फर्म का व्यवसाय सं० १९६० के करीब साझे में चलता रहा। तदनन्तर आप सब लोग अलग र व्यवसाय करने लग गये। इस समय सेठ सुगनचन्दजी देश में ही निवास करते हैं। आपके चम्पालालजी, प्रेमचन्दजी, नेमचन्दजी तथा भँवरलालजी नामक चार पुत्र हैं। सेठ धनराजजी सेठ ऊगरचन्दजी के नाम पर दत्तक चले गये। सेठ खूबचन्दजी का स्वर्गवास होगया है। आपके सुमेरमलजी नामक एक पुत्र हैं । आप इस समय अपने काका सेठ हजारीमलजी के साथ काम करते हैं। सेठ हजारीमलजी बड़े योग्य, मिलनसार तथा धार्मिक प्रकृति के पुरुष हैं। आप आज कल मेसर्स हजारीमल माणकचन्द के नाम से सूता पट्टी में धोती जोड़ों का व्यापार करते हैं। इसके अतिरिक्त आपकी लुक्सलेन में एक छातों के व्यवसाय की फर्म तथा छातों का कारखाना भी है। आपके पुत्र बा० मागकचन्दजी इस समय पढ़ रहे हैं। सेठ मुन्नालालजी का परिवार इस परिवार में सेठ मुन्नालालजी बड़े नामांकित व्यक्ति हुए । परिवार की उन्नति का सारा श्रेय आप को ही है। आप सबसे पहले संवत् १९२७ में देश से व्यापार निमित्त कलकत्ता आये और दलाली का काम प्रारंभ किया। आप दे ही व्यापार कुशल, होनहार तथा होशियार सज्जन थे। आपने अपनी व्यवहार कुशलता, व्यापार चातुरी तथा होशियारी से दलाली में अच्छी सफलता प्राप्त की। आप बड़े परिश्रमी तथा भग्रसोची सज्जन थे। दलाली में धनोपार्जन कर आपने अपने आर्थिक उत्थान के हेतु अपने छोटे भ्राता शोभाचन्दजी के साझे में 'मन्नालाल शोभाचन्द सुराणा' के नाम से संवत् १९४० में स्वतन्त्र फर्म स्थापित की और इस पर विलायत से धोती जोड़ों का कारवार चालू किया। इस व्यवसाय में आपको बहुत काफी सफलता प्राप्त हुई। आपके व्यवसाय को ज्यों ? सफलता मिलती गई त्यों त्यों उसे बढ़ाते गये और उसमें लाखों रुपये की सम्पत्ति उपार्जित की। आप की फर्म पर विलायत से धोती जोड़ों का डायरेक्ट इम्पोर्ट होता था। आप बड़े बुद्धिमान तथा अध्यवसायी सज्जन थे। आप वृद्धावस्था में चुरू में ही रहते रहे। आपको साधु सेवा की भी बड़ो लगन थी। आपका अन्तिम जीवन साधु सेवा में ही व्यतीत हआ। भभी भापका सं० १९९१ में स्वर्गवास हुआ है। आप
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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