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________________ बरड़िया वजनदार पुरुष है। आपके यहाँ रुई, आढ़त का कार्य होता है। आपके छोटे बंधु गोडीदासजी भापके साथ व्यापार में सहयोग लेते हैं। - सेठ रामचन्द्र चुन्नीलाल संखलेचा आर्वी ( बरार) इस परिवार का आगमन लगभग १५० साल पहिले जेसलमेर से आर्वी हुआ, पहिले इस दुकान पर "हुकुमचंद रामचंद" के नाम से काम होता था, संखलेचा हुकुमचंदजी के पुत्र रामचंदजी तथा रामचन्द्रजी के पुत्र चुन्नीलालजी हुए । संखलेचा चुन्नीलालजी संवत् १९०४ में स्वर्गवासी हुए, आपके ३ पुत्र भगवानदासजी, राजमलजी तथा गोकुलदासजी हुए. इनमें से भगवानदासजी २५/३० साल पहिले गुजर गये, तथा राजमलजी संखलेचा अमोलकचंदजी के नाम पर दत्तक गये। संखलेचा गोकुलदासजी का जन्म संवत १९५६ में हआ। भगवानदासजी के पुत्र सोभागमलजी का जन्म संवत् १९५५ में तथा विसनदासजी का १९५८ में हमा। आपके हार्थों से दुकान के व्यवसाय व उन्नति मिली है। स्थानीय श्वे. जैन मंदिर की व्यवस्था आप लोगों के जिम्मे हैं, आपकी फर्म “रामचन्द्र सुखीलाल" के नाम से रुई चांदी सोना तथा लेनदेन का काम काज करती है तथा आर्वी के व्यापारिक समाज में प्रतिष्ठित मानी जाती है । संखलेचा राजमलजी, "अमोलचन्द हीरालाल" के नाम से कार बार करते हैं। केसरीमलजी संखलेचा, येवला भापका मूल निवास तीवरी (जोधपुर) है। देश से सेठ हरकचंदजी संखलेचा व्यापार के निमित्त येवले भाये तथा सेठ भीमराजजी दईचन्दजी की भागीदारी में कपड़े का व्यापार आरंभ किया । संवत् १९६३।६४ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके पुत्र केसरीमलजी तथा पूनमचंदजी विद्यमान हैं। आप बंधु सेठ भीमराजजी दईचन्दजी की बम्बई और येवला दुकान के भागीगार हैं। केसरीमलजी का जन्म १९५२ में हुआ। भाप सजन व्यक्ति हैं। तथा येवले के व्यापारिक समाज में प्रतिष्ठित हैं। श्री लक्ष्मीलालजी सखलेचा, जावद आप जावद (मालवा) के एक प्रतिष्ठित परिवार के हैं। भापके पिताजी वहाँ के लक्षाधीश व्यापारी थे। श्री लक्ष्मीलालजी ज्योतिष शास्त्र के अच्छे ज्ञाता हैं। और आपके सामाजिक विचार भी। अच्छे हैं। ज्योतिष के सम्बन्ध में आपने कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं। इस समय आप बम्बई में दलाली तथा ज्योतिष दोनों कार्य करते हैं। आपके चांदमलजी तथा सोभागमलजी नामक २ पुत्र हैं, चांदमलजी अपनी घरू जमीदारी का काम सम्हाल्ते हैं । और सोभाग्यमलजी एफ० ए० में पढ़ते हैं। सोभाग्यमलजी प्रतिभाशाली युवक हैं। बरडिया बरड़िया गौत्र की उत्पत्ति-पवार राजवंशीय राजपूतों से बरडिया ओसवालों की उत्पत्ति का पता चलता है। कहते हैं कि पंवार लाखनसी के पुत्र बेरसी को श्री उद्योतन सूरिजी ने उपदेश कर जैन
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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