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________________ राजनैतिक और सैनिक महल जिस समय अंगरेज लोग राजस्थान में राजपूत राजामों के साथ मैत्री स्थापित करने के प्रयत्न में लगे हुये थे उस समय सेठ बहादुरमलजी और जोरावरमलजी बापना का बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर, उदयपुर, इन्दौर इत्यादि रियासतों पर अच्छा प्रभाव था। इसलिए ब्रिटिश सरकार के साथ इन रजवाड़ों का मैत्री सम्बन्ध स्थापित करवाने में आपने बहुत मदद दी । खास कर इन्दौर राज्य के कई महत्वपूर्ण कार्यों में जोरावरमलजी का बहुत हाथ रहा । ब्रिटिश गवर्नमेण्ट और रियासतों के बीच जो अहदनामे हुए उनमें कई मुश्किल बातों को हल करने में आपने बड़ी सहायताएं की। सन् १८१८ ई० में कर्नल टॉड राजपूताने के पोलिटिकल एजण्ट होकर उदयपुर गये । उस समय मेवाड़ की आर्थिक दशा बहुत खराब हो रही थी ऐसी विकट स्थिति में कर्नल टॉड ने महाराणा भीमसिंहजी को सलाह दी कि सेठ जोरावरमलजी ने इन्दौर की हालत सुधारने में रियासत को बहुत मदद की है इसलिए यहाँ पर भी उनको बुलाया जावे । इस पर महाराणा ने सेठ जोरावरमलजी को अपने यहाँ आमंत्रित किया और अत्यन्त सम्मान के साथ कहा कि आप अपनी कोठी को यहाँ स्थापित करें । महाराणा की आज्ञा को स्वीकार कर सेठ जोरावरमलजीने उदयपुर में अपनी कोठी स्थापित की, नये गाँव बसाये, किसानों को सहायताएँ दी और चोर लुटेरों को दण्ड दिलवाकर राज्य में शान्ति स्थापित की । इनकी इन बहुमूल्म सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराणा ने उन्हें पालकी और छड़ी का सम्मान और “सेठ" की उपाधि बख्शी तथा बदनौर परगने का पारसौली ग्राम भी जागीर में दिया। पोलिटिकल एजेण्ट ने भी आपको प्रबन्ध कुशल देखकर अंग्रेजी राज्य के खजाने का प्रबन्ध भी आपके सिपुर्द कर दिया। महाराणा स्वरूपसिंहजी के समय में रियासत पर बीस लाख रुपये का कर्ज हो गया था जिसमें अधिकांश सेठ जोरावरमलजी का था, महाराणा ने आपके कर्ज का निपटारा करना चाहा। उनकी यह इच्छा देख सन् १८४६ की २८ मार्च को सेठ जोरावरमलजी ने महाराणा को अपनी हवेली पर निमन्त्रित किया और जैसा महाराणा साहब ने चाहा उसी प्रकार कर्ज का फैसला कर लिया। इससे प्रसन्न होकर महाराणा साहब ने आपको कुण्डाल गाँव दिया तथा आपके पुत्र चान्दणमलजी को पालकी और पौत्र इन्द्रपाल जी को भूषण और सिरोपाव दिये। इन्हीं के अनुकरण पर दूसरे लेनदारों ने भी महाराणा की इच्छानुसार अपने कर्ज का फैसला कर लिया और इस प्रकार रियासत का भारी कर्ज सहज ही अदा हो गया इस बुद्धिमानी पूर्ण कार्य से आपकी बड़ी प्रशंसा हुई। इस प्रकार अपनी बुद्धिमानी, राजनीतिज्ञता और ब्यापार दूरदर्शिता से सारे राजस्थान में लोकप्रियता और नेकनामी प्राप्त कर सन् १८५३ की २६ फरवरी को आप स्वर्गवासी हुए ।* * इन्दौर के वर्तमान प्राइम मिनिस्टर रा० वा. सिरेमलजी बापना सी० आई० ई. आपके ही वंशज है। ९१
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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