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________________ गुगलिया सेठ गुलाबचन्द हीराचन्द गुगलिया, मद्रास इस परिवार के पुरुष श्वेताम्बर जैन मन्दिर मार्गीय आम्नाय के मानने वाले हैं। इस खानदान के पूर्व पुरुष सेठ जयसिंहजी देवाली (मारवाड़) में रहते थे। वहाँ से इनके पुत्र खूमाजी, चाणोद ( मारवाड़ ) आये। इनके वीरचन्दजी और भूरमलजी नामक २ पुत्र हुए। सेठ वीरचन्दजी भरमलजी गुगलिया-आप दोनों भाइयों में पहले सेठ वीरचन्दनी सन १८७० में व्यवसाय के लिये अहमदाबाद गये। वहाँ से आप कर्नाटक की ओर गये। उधर २ साल रहकर आपने मद्रास में आकर पैरम्बूर वैरक्स में दुकान की। यहाँ आने पर आपने अपने छोटे भाई भूरमलजी को भी बुलालिया, तथा अपनी दुकान की एक ब्रांच और खोली। इन दोनों बंधुओं ने साहस पूर्वक व्यापार में सम्पत्ति उपार्जित कर अपने सम्मान को बढ़ाया। आपने अपने कई जाति भाइयों को सहायता देकर दुकानें करवाई। सेठ वीरचन्दजी सन् १९०५ में स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र माणकचन्दजी का चाणोद में छोटी वय में स्वर्गवास हो गया। सेठ वीरचन्दजी के पश्चात् सेठ भूरमलजी व्यापार समालते रहे । सन् १९९९ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके धनरूपमलजी, हीराचन्दजी तथा गुलाबचन्दजी नामक ३ पुत्र हुए। इनमें गुलाबचंदनी सेठ विरदीचंदजी के यहां दत्तक गये। तथा धनरूपमलजी का स्वर्गवास छोटी वय में हो गया। इस समय इस परिवार में हीराचन्दजी तथा गुलाबचन्दजी गुगलिया विद्यमान हैं। आपका जन्म क्रमशः सन् १९०८ तथा १९१३ में हुआ। सन् १९२९ में इन दोनों भाइयों ने अपना कार्य प्रेम पूर्वल अलग २ कर लिया है। आप अपने पिताजी के स्वर्गवासी होने के समय बालक थे। अतः फर्म का काम वीरचन्दजी की धर्म पत्नी श्री मती जड़ाव बाई में बड़ी दक्षता के साथ सह्माला । आपका धर्म ध्यान में बड़ा लक्ष्य हैं। आपने शत्रुजय तीर्थ में एक टोंक पर छोटा मन्दिर बनवाया। गुंदौल गाँव में दादाबाड़ी का कलश, चढ़ाया। इसी प्रकार जीव दया, स्वामी वात्सल्य पाठशाला आदि शुभ कार्यों में सम्पत्ति लगाई। इस समय गुलाबचन्दजी, “वीरचन्द गुलाबचन्द" के नाम के तथा हीराचन्दजी, "भूरमल हीराचन्द" के नाम से व्यापार करते हैं। मद्रास के ओसवाल समाज में यह फर्म प्रतिष्ठित मानी जाती है। सेठ गम्भीरमल वख्तावरमल गुगलिया, धामक इस परिवार का मूल निवास स्थान बलँदा (जोधपुर) हैं। आप स्थानकवासी आम्नाय के माननेवाले सजन हैं। जब सेठ बुधमलजी लुणावत ने धामक आकर अपनी स्थित को ठीक किया, तथा उन्होंने अपने जीजा (बहिन के पति) सेठ गम्भीरमलजी को भी व्यापार के लिए धामक बुलाया। सेठ गम्भीरमलजी के साथ उनके पुत्र वख्तावरमलजी भी धामक आये थे। इन दोनों पिता पुत्रों ने व्यापार में सम्पत्ति पैदा कर अपने सम्मान तथा प्रतिष्ठा की वृद्धि की। सेठ वख्तावरमलजी बड़े उदार पुरुष थे। बरार प्रान्त के गण्य मान्य ओसवाल सज्जनों में आपकी गणना थी। आपकी धर्म पत्नी ने बलूंदे में एक
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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