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________________ नखत बाबू शुभकरनजी का जन्म संवत् १९६५ का है। भाप भी भाजकल अपना स्वतंत्र व्यापार कलकत्ता में ममोहरदास कटला में मेसर्स खेतसीदास शुभकरन जम्मद के नाम से कर रहे हैं। आप भी मिलनसार एवम् सजन व्यक्ति हैं। आपकी भी सरदार शहर में एक सुन्दर हवेली बनी हुई है। यह परिवार श्री जैन श्रेताम्बर तेरापंथी संप्रदाय का मानने वाला है। नखत मुकीम फूलचन्दजी नखत, कलकत्ता इस परिवार के पूर्व व्यक्ति जैसलमेर रहते थे। वहाँ से सेठ जोगवरमलजी बंगला बस्ती (वर्तमान फैजाबाद यू०पी०) में आये। आपके पुत्र बख्तावरमलजी ने यहाँ कपड़े का व्यापार प्रारम्भ आपने अपची व्यापारिक प्रतिभा से इसमें अच्छी उन्नति की। धार्मिक क्षेत्र में भी आप कम म रहे। बापने यहाँ एक जैन मन्दिर बनवाया और श्री जिनकुशल सूरि महाराज की चरण पादुका स्थापित की। आपके कन्हैयालालजी, मुकुन्दीलालजी और किशनलालजी नामक तीन पुत्र हुए। भाप लोगों का स्वर्गवास हो गया। सेठ कन्हैयालालजी के पुत्र बाबू फूलचन्दजी हुए। . फूलचन्दजी नखत-आप बड़े प्रतिभा सम्पन्न और तेज नजर के व्यक्ति थे। आप १४ वर्ष की अवस्था में कलकत्ता भाये । यहाँ आपने जवाहरात का व्यापार शुरू किया। इममें आपको आशातीत सफलता मिली। आपको संवत् १८८० में लार्ड रिपन ने कोर्ट ज्वेलर नियुक्त किया था। आप आजीवन कोर्ट ज्वेलर रहे । आपके सिखाये हुए बहुत से व्यक्ति नामी जौहरी कहलाये ! आपका स्वर्गवास संवत् १९४१ में हो गया। आप बड़ी सरल प्रकृति के पुरुष थे। आपका स्थानीय पंच पंचायती में बहुत नाम था। भाप अपने समय के नामी जौहरी और प्रतिष्ठित पुरुष थे। आपके कोई पुत्र न होने से आपके नाम पर बा० मोतीचन्दजी नाहटा ब्यावर से दत्तक आये। मोतीचन्दजी नखत-आपने सर्व प्रथम सेठ लाभचन्दजी के साझे में “लाभचन्द मोतीचन्द" नाम से जवाहरात का व्यापार किया। आपकी इस व्यापार में अच्छी निगाह है अतएव आपने इसमें बहुत सफलता प्राप्त की। इस फर्म के द्वारा “लाभचन्द मोतीलाल फ्री जैन लिटररी और टेकनिकल स्कूल" खोला गया जिसमें आज केवल लिटररी की पढ़ाई होती है। आपने अपने पिताजी की इच्छानुसार उनके स्मारक में श्यामाबाई लेन में फूलचन्द मुकीम जैन धर्मशाला के नाम से एक बहुत सुन्दर धर्मशाला का निर्माण कर वाया । इस धर्मशाला में बहुत अच्छा इन्तजाम है। आपने सम्मेद शिखरजी के मामले में भी और लोगों के साथ बहुत मदद की है। जाति हित की ओर आपका अच्छा ध्यान रहता है। सम्मेद शिखर के पहाड़ को खरीदने में जो रुपया आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी से आया था उसे वापस करने के लिये ट्रस्ट कायम किया गया है। उसमें आपने १५०००)का कम्पनी का कागज उदारता पूर्वक प्रदान किया किया है। आप मिलनसार, समझदार और सज्जन व्यक्ति हैं। आपके इस समय फतेचंदजी ५९.
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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