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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व पर लिखा है कि "मालदास मेहता प्रधान थे और उनके डिप्टी मौजीराम थे। ये दोनों बुद्धिमान और वीर थे।" "Maldas mehta was civil member with Maujiram as his Deputy, both men of talent and energy" इत्यादि । महता देवीचन्दजी मेहता अगरचन्दजी के बाद उनके बड़े पुत्र देवीचन्दजी मेवाड़ राज्य के प्रधान मन्त्री ( Prime Minister ) के पद पर अधिष्ठित हुए। पर कुछ ही वर्षों बाद जब उन्होंने देखा कि मेघादाधिपति राज्य और प्रजाहित कार्यों में उनकी सलाह पर ध्यान नहीं देते हैं तो वे अपने प्रधान मन्त्री के पद से अलग हो गये। इतना ही नहीं उन्होंने प्रधान मन्त्री का पद स्वीकार न करने की भी सौगन्ध खा ली। मेहता देवीचन्द जी के कार्य काल में किसी दवाब के कारण मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह जी ने सुप्रसिद्ध झाला जालिमसिंहजी को मांडलगढ़ का किला प्रदान कर दिया और इस सम्बन्ध में महाराणा ने मेहता देवीचन्दजी को एक पत्र लिखा, जिसका भाव यह है "मांडलगढ़ का किला खालसा तथा जागीर के सब गाँवों समेत जालिमसिंह को दे दिया गया है. सो वे सब उसके सुपुर्द कर देना और तू हजूर में हाजिर होना। तेरी जागीर, गाँव कूआ, खेत भादि पर तू अपना अमल रखना। तेरे घरवार के सम्बन्ध में हम तब हुक्म देंगे जब तू जालिमसिंह के साथ हुजूर में हाजिर होगा। यह परवाना सम्बत १८५९ के भादवा सुदी ८ बुधवार के दिन श्री मुख की परवानगी से जाहिर हुआ है। ___ जब देवीचन्दजी ने यह परवाना देखा तो वे बड़े असमंजस में पड़ गये। जालिमसिंहजी के साथ यद्यपि उनका बड़ा ही मैत्री पूर्ण सम्बन्ध था, पर इससे भी अधिक मेवाड़ के हित पर उनका सारा ध्यान लगा हुआ था। इसलिये उन्होंने किसी बहाने से टालमटूल कर झाला को किला न सौंपा। इस पर फिर महाराणा भीमसिंहजी ने उक्त मेहताजी को जोरदार पत्र लिखा, वह इस प्रकार है: स्वस्ती श्री मेहता देवीचन्दजी अपरंच परगणो मांडलगढ़ किला खालसा जागीर . सुदी जलिमसिंहजी झाला है बगशो जणी में अमल करवारो परवानी थारे नाम भी लिख दिया परन्तु थे अणा से अमल करायो नहीं और लड़वाने तयार हुअ सो म्हारा जीव को मलो भाव और श्याम खौर होवे त' लख्या मुंजव अणारो अमल कराय दीजो अब आगी काढ़ी है तो म्हारा हरामखोर होता संवत् १८५६ श्रासोज वुदी १४ मौमे जब इस दूसरे पत्र पर भी देवीचन्दजी ने ध्यान नहीं दिया, तब महाराणा साहब ने एक तीसरा पत्र और लिखा। पर देवीचन्दजी जानते थे कि माँडलगढ़ का किला मेवाड़ में सैनिक रहि से बड़े महत्व
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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