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________________ फिरोदिया श्री उम्मेदमलजी फिरोदिया का खानदान, अहमदनगर इस खानदान का मूल निवास स्थान पीपाड़ (मारवाड़) का है। आपकी आम्नाय श्वेताम्बर स्थानकवासी है। इस खानदान में श्री उम्मेदमलजी फिरोदिया सबसे पहले अहमदनगर जिले में आये । आपकी हिम्मत और बुद्धिमानी बहुत बड़ी चढ़ी थी। यहां आकर आपने साहसपूर्वक पैसा प्राप्त किया और फिर मारवाड़ जाकर शादी की, वहाँ से फिर अहमदनगर आये और कपड़े की दुकान स्थापित की । आपके दो पुत्र हुए जिनके नाम खूबचन्दजी और विशनदासजी थे। अपने पिताजी के पश्चात् आप दोनों भाई मनीलेण्डिग और कपड़े का म्यपार करते रहे। इनमें से फिरोदिया खूबचन्दजी का स्वर्गवास सन् १९०१ में और फिरोदिया विशनदासजी का सन १८९७ में होगया। फिरोदिया बिसनदासजी के तीन पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः शोभाचन्दजी, माणिकचन्दजी और पत्रालालजी थे। आप तीनों भाई भी कपड़े और मनीलैण्डिा का व्यापार करते रहे । इनमें से शोभाचन्दजी का स्वर्गवास सन १९११ में हुआ। आप बड़े धार्मिक, शांत प्रकृति वाले और मिलनसार पुरुष थे। आपके पुत्र कुन्दनमलजी फिरोदिया हुए। कुन्दनमलजी फिरोदिया-आपका जन्म सन् १८९५ में हुआ। मापने सन् १९०७ में बी. ए०की और सन् १९१० में एल० एल० बी० की डिग्रियाँ प्राप्त की। आप सन् १९०८ में फर्ग्युसन कालेज के दक्षिण-फेलो रहे। उस समय भारत में ओसवालों के इने गिने शिक्षित युवकों में से आप एक थे। आप बड़े शांत प्रकृति के, उदार, और समाज सुधारक पुरुष हैं। जैन जाति के सुधार और अभ्युदय की ओर आपका बहुत लक्ष्य है । अहमदनगर की पांजरापोल के आप सत्रह वर्षों से सेक्रेटरी हैं । आप यहां के व्यापारी एसोसियेशन के चेअरमेन, अहमदनगर के आयुर्वेद विद्यालय, अनाथ विद्यार्थी गृह और हाईस्कूल की मैनेजिंग कमेटी के मेम्बर हैं। सन् १९२६ में आप बम्बई की लेजिस्लेटिव कौंसिल में अहमदनगर स्वराज्य पार्टी की ओर से प्रतिनिधि चुने गये थे। इसी प्रकार राष्ट्रीय शिक्षण संस्था के चेअरमेन रहे थे। अहमदनगर कांग्रेस कमेटी के भी आप बहुत समय तक सेक्रेटरी रहे हैं। अहमदनगर के सेंट्रल बैङ्क के आप चभरमैन हैं। इसी प्रकार जैन कान्फ्रेंस, जैन बोडिंग पूना इत्यादि सार्वजनिक संस्थाओं से आपका बहुत घनिष्ट सम्बन्ध हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि आप भारत के जैन समाज में गण्यमान्य व्यक्ति हैं। आपके तीन पुत्र हैं। जिनके नाम श्री नवलमलजी मोतीलालजी और और हस्तीमलजी फिरोदिया हैं। नवलमलजी फिरोदिया-आपका जन्म सन १९१० में हुआ। आपने सन् १९३३ में बी. एस० सी० की परीक्षा पास की। आप बड़े देश भक्त और राष्ट्रीय विचारों के सज्जन हैं। सन् १९३० और सन् १९३२ के आन्दोलन में आपने कालेज छोड़ दिया। तथा आन्दोलन में भाग हेते हुए ९ मास
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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