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________________ पोसवाल जाति का इतिहास दो तीन हजार रुपये खर्च कर पानी के पम्प लगाये, राममन्दिर तथा धारातीर्थ में बहुतसी सहायताएं दी। आप शिवपुर जैनतीर्थ की व्यवस्थापक कमेटी के मेम्बर थे। इसी तरह के प्रतिष्ठापूर्ण कार्य आजीवन करते रहे। आपने ही लोनार में सर्व प्रथम जिनिंग फेक्टरी खोली आपके अखेचन्दजी, उत्तमचन्दजी, लखमीचन्दजी, तथा गेंदचन्दजी नामक ४ पुत्र विद्यमान हैं। इस समय आप चारों ही भाई फर्म के व्यापार का उत्तमता से संचालन कर रहे हैं। आपका परिवार लोनार तथा आस पास के ओसवाल समाज में नामांकित माना जाता है। सेठ अखेचंदजी- आपका जन्म संवत् १९५० में हुआ। आपके यहाँ “हणुतमल मोतीलाल के नाम से बैटिग, सराफी, कपड़ा का व्यापार तथा जिनिंग फेक्टरी का कार्य होता है। लोनार में भापकी दुकान मातवर है। सेठ उत्तमचन्दजी का जन्म संवत् १९६१ में लखमीचन्दजी का जन्म संवत् १९६५ में तथा गेंदचन्दजी का जन्म संवत् १९६८ में हुआ। गेदचन्दजी ने एफ. ए. तक शिक्षा पाई। आपने हनुमान व्यायाम शाला का स्थापन किया। आप उत्साही युवक हैं। सेट अखेचन्दजी के पुत्र नथमल जी तथा रतनचन्दजी पढ़ते हैं। और उत्तमचन्दजी के पुत्र मदनचन्दजी बालक हैं। सेठ पूनमचन्दजी संचेती का स्वर्गवास अपने बड़े भ्राता मोतीलालजी के ८ मास बाद हुआ आपके पुत्र माणकचन्दजी का जन्म संवत १९५६ में हआ। आप "हीरालाल पूनमचन्द" के नाम से व्यापार करते हैं। आपके कपूरचन्दजी, तेजमल तथा पारसमल नामक पुत्र हैं। सेठ चुनीलालजी के पुत्र त्रिवकलालजी विद्यमान हैं। भापके पुत्र खुशालचन्दजी ने दंगे के समय दंगाइयों को पकड़वाने में पुलिस को बहुत इमदाद दी थी। आपके छोटे भाई गणेशलालजी, मिश्रीलाल जी तथा चम्पालालजी हैं। सेठ थानमल चंदनमल संचेती, चिगंनपेठ ( मद्रास) इस परिवार के मालिकों का मूल निवास स्थान हूंडला (मारवाद) का है। आप श्वेताम्बर जैन समाज के बाइस सम्प्रदाय को मानने वाले सज्जन हैं। सबसे पहिले इस परिवार के सेठ शेषमलजी "मेसर्स पूनमचन्द श्रीचन्द" के साझे में पूना में व्यापार करते थे। आप संवत् १९७६ की जेठ बुदी को स्वर्गवासी हुए। आपके चार भाई और थे जिनके नाम भीकमचन्दजी, प्रतापमलजी, थानमलजी तथा जेवंतराजजी थे। सेठ शेषमलजी के स्वर्गवास होजाने के बाद संवत १९६० में थानमलजी ने चिंगनपेठ में "शेषमल थानमल" के नाम से दुकान स्थापित की। श्री शेषमलजी के पनालालजी, घेवरचन्दजी तथा मिश्रीमलजी नामक तीन पुत्र हुए जिममें से मिश्रीमलजी. भीकमचन्दजी के यहाँ दत्तक रख दिये गये। प्रतापमलजी के हीराचन्दजी तथा हस्तीमलजी नामक दो पुत्र हुए । हीराचन्दजी के भंवरीलालजी तथा रिखबचन्द्रजी नामक दो पुत्र हुए। संवत १९६८ में शेषमलजी तथा थानमलजी दोनों भाई अलग २हो गये। शेषमलजी के पुत्र पचालालजी “मेसर्स शेषमल पनालाल" के नाम से अलग स्वतंत्र दुकान कांजीवरम् में करते हैं। सेठ थानमलजी की फर्म इस समय चिंगनपेठ में है। आप बड़े सजन है। तथा अपने जाति भाइयों का अच्छा सत्कार करते रहते हैं। भापकी यहां की पंच पंचापतियों की अच्छी प्रतिष्ठा है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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