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________________ ओसवाल जाति का इतिहास शाह मोतीरामजी के पश्चात् उनके पुत्र एकलिंगदासजी केवल १८ वर्ष की वय में प्रधान बनाये गये । मगर आपकी उम्र बहुत कम होने से प्रधान का काम आपके काका सहा मौजीरामजी देखते रहे । मगर जब इनका भी स्वर्गवास हो गया तो एकलिंगजी ने प्रधान के पद से इस्तिफा दे दिया। महाराणा साहब की आप पर भी बहुत कृपा रही । आपको कई वार फौजें लेकर भिन्न २ स्थानों पर युद्ध करने के लिये जाना पड़ा था । आप बहादुर एवम् वीर प्रकृति के पुरुष थे । : महाराणा भीमसिंह और प्रोसवाल मुत्सुद्दी सोमचंद गाँधी-सन् १७६८ में उदयपुर के राज्य सिंहासन को महाराणा भीमसिंहजी (द्वितीय) सुशोभित कर रहे थे। इनके राजस्व काल में मेवाड़ की बहुत सी भूमि दूसरों के अधिकार में जाचुकी थी। बहुत से सरदार राज्य से बागी हो गये थे। खजाना एक दम खाली हो गया था। यहाँ तक कि राज्य प्रबन्ध का साधारण खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा था । ऐसी परिस्थिति में सोमजी गाँधी जनानी ड्योढ़ी पर काम कर रहे थे। ये सोमजी ओसवाल जाति के गांधी गौत्रीय सज्जन थे। ये बड़े बुद्धिमान, कुशाग्र बुद्धि एवम् समय सूचक व्यक्ति थे । यह हम ऊपर लिख चुके हैं कि मेवाड़ का खजाना खाली हो गया था । जब कभी महाराणा को द्रव्य की आवश्यकता होती तो उन्हें तत्कालीन चूंडावत सरदार रावत भीमसिंहजी वगैरह का मुंह ताकना पड़ता था। इन भीमसिंहजी ने सब प्रकार से महाराणा को अपने वश कर रखा था। एक समय का जिक्र है राजमाता ने इन्हीं चूंडावत सरदार से महाराणा के जन्म दिन की खुशी में उत्सव मनाने के लिये रुपयों की आवश्यकता बतलाई। मगर चूंडावत बड़े चालाक थे। उन्होंने रुपया देने में टालम टूल कर दी। इससे राजमाता बहुत अप्रसन्न हुई। ऐसे ही अवसर को उपयुक्त जान सोमजी गांधी ने रामप्यारी नामक एक स्त्री के द्वारा राजमाता से अर्ज करवाई कि यदि आप मुझे प्रधान बनादें तो मैं रुपयों का प्रवन्ध कर सकता हूँ। कहना न होगा कि राजमाता द्वारा सोमजी प्रधान बना दिये गये। सोमजी बड़े कार्यकुशल और योग्य व्यक्ति थे। सब से प्रथम उन्होंने मेवाड़ की पतनावस्था के कारणों को सोचा । उन्होंने सोचा कि जब तक मेवाड़ी सरदारों के आपसी मनमुटाव व वैमनस्य को न मिटाया जायगा, तब तक मेवाड़ का इस प्रकार की शोचनीय दशा से उद्धार पाना कठिन है। अतएव उन्होंने अपने विचारों को कार्य रूप में परिणित करने के लिये शक्तावत्तों से मेल जोल बढ़ाया और इनकी सहायता से कुछ रुपये एकत्रित कर राजमाता के पास भेजे । जब यह बात रावत भीमसिंहजी ने सुनी
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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