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________________ ओसवाल जाति का इतिहास आपके इस समय तीन पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः भंवरलाल जी, पूनम दजी और सिधकरनजी हैं। इनमें से भवरलालजी व्यापार कार्य करते हैं। शेष दोनों पढ़ते हैं। सेठ जसकरन सुजानमल चण्डालिया, सरदारशहर इस परिवार के प्रथम व्यक्ति सेठ रायसिंहजी सवाई से यहाँ आकर बसे तथा साधारण दुकानदारी का काम प्रारम्भ किया। आपके दो पुत्र हुए जिनके नाम उदयचन्दजी और जैतरूपजी था । वर्तमान इतिहास जैतरूपजी के वंशजों का है। जैतरूपजी के चार पुत्र सेठ कस्तूरचन्दजी, ताराचन्द जी, छतमलजी और सूरजमलजी हुए। आप सब भाई अलग २ होगये एवम् अपना अपना व्यापार करने लगे। सेठ कस्तुरचन्दजी के मुकनचन्दजी नामक पुत्र हुए। आप सरदार शहर तथा कलकत्ता में व्यापार करते रहे। आपका स्वर्गवास संवत् १९६० में होगया। आपके जुहारमलजी एवम् जसकरमजी नामक दो पुत्र हए । जुहारमलजी का केवल १५ वर्ष की उम्र में स्वर्गवास होगया। ___ वर्तमान में इस फर्म के संचालक सेठ जसकरनजी तथा आपके पुत्र कुं० सुजानमलजी हैं। इस फर्म की सारी उमति जसकरनजी ही के द्वारा हुई। आप पहले पहल संवत् १९६३ में कलकत्ता आये। यहां आकर आपने पहले रावतमल पन्नालाल बोरड़ के यहां सर्विस की। इसके पश्चात् आपका इसमें साझा होगया। फिर संवत् १९७७ की साल से आपने अपनी स्वतंत्र फर्म उपरोक्त नाम से शुरू की। और स्वदेशी कपड़े का व्यापार प्रारम्भ किया। पश्चात् संवत् १९८८ से आप सुजानमल चण्डालिया के नाम से व्यापार कर रहे हैं। आपकी गिद्दी कलकत्ता में ३० । ३८ आर्मेनियम स्ट्रीट में है। तथा सेलिंग शाप नार्मल लोहिया लेन में है। आपके सुजानमलजी नामक एक पुत्र हैं आप भी व्यापार में भाग लेते हैं। आप लोग प्रारम्भ से ही श्री जैन तेरा पन्थी संप्रदाय के अनुयायी हैं। सेठ आनंदरूप कस्तूरचंद चंडालिया, जालना इस खानदान के मालिक मूल निवासी गठिया (जोधपुर स्टेट) के हैं। आप मन्दिर आम्नाय को मानने वाले सजन हैं। इस खानदान वाले करीब १५० वर्ष पहिले मारवाड़ से दक्षिण में आये। तथा ओसाई खेड़ा नामक गाँव में रहे। इन आने वालों में सेठ श्यामदासजी, दुरगदासजी तथा उदयचन्दजी ये तीनों भाई मुख्य थे। कुछ समय पश्चात् श्यामदासजी के परिवारवालों ने औरंगाबाद में और दुरगदास जी के परिवार वालों ने जालना में अपनी दुकानें खोली। दुरगदासजी के पुत्र सेठ आनन्दरूपजी हुए। आप बड़े विद्वान और धर्मप्रेमी पुरुष थे। आपने अपने यहाँ सैकड़ों शास्त्रों का संग्रह किया जो अभी भी विद्यमान है। मुगलाई स्टेट में आप बड़े नामी हुए सेठ आनन्दरूपजी का स्वर्गवास संवत् १९१५ के करीब हुआ। आपके पश्चात् आपके पुत्र कस्तूरचन्दजी बहुत प्रख्यात हुए । निजाम-स्टेट के अन्दर आपकी बहुत बड़ी इजत थी यहाँ तक कि बहुत दिनों तक केंटुन्मेट की तरफ से आपके यहाँ सम्मान के लिये १२ जवान और एक हवलदार हमेशा २४ घंटा पहरा देते थे । आपकी तरफ से दान धर्म और परोपकार भी बहुत होता था। सेठ कस्तूरचन्दजी का संवत् १९३७ में स्वर्गवास हुभा। आपके कोई पुत्र न होने से केसरीचन्दजी म्यावर से दत्तक लाये गये । इनका भी स्वर्गवास सन् १९१९ में हुआ। इस समय आपके पुत्र केवलचन्दजी विद्यमान हैं।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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