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________________ ओसवाल जाति का इतिहास मेहता अगरचंदजी बड़े वीर और रणकुशल व्यक्ति ही नहीं थे वरन् एक अच्छे शासक भी थे। उन्होंने मेवाड़ के इस अशान्ति काल में मांडलगढ़ का शासन बड़ी योग्यता से किया। आपने मांडलगढ़ निवासियों की सुविधा के लिये कई अच्छे २ काम किये तथा सैकड़ों बाहर के लोगों को लाकर बसाया । मापने वहाँ पर सागर और सागरी नामक दो बड़े २ जलाशय बनाये और किले की मरम्मत करवा कर उसे शत्रु के भय से सुरक्षित कर दिया। उदयपुर के तत्कालीन महाराणाजी ने भी आपकी बहुमूल्य सेवाओं से प्रसन्न होकर आपको वहाँ की तलेठी में जालेसवार नामक तालाब जागीरी में बख्शा । इसके बाद की घटना है कि शाहपुरा नरेश ने बलवा करके मेवाड़ राज्य के जहाजपुर जिले को अपने कब्जे में कर लिया। इस पर उदयपुर के महाराणाजी की आज्ञा लेकर मेहता अगरचन्दजी ने एक बहुत बड़ी सेना के साथ शाहपुरा के राजाधिराज पर आक्रमण कर दिया । इस चढ़ाई में शाहपुरा के महाराजाधिराज तथा मेहता अगरचन्दजी के बीच घमासान लड़ाई हुई। इस लड़ाई में भी मेहता अगरचन्दजी की विजय हुई और जहाजपुर का सारा परगना पुनः मेवाड़-राज्यान्तर्गत आगया। . कहने का मतलब यह है कि मेहता अगरचन्दजी बड़े वीर, रणकुशल तथा स्वामिभक्त व्यक्ति थे । आपके जीवन को प्रत्येक घटना में इन बातों का पूरा २ समावेश था। आप बड़े राजनीतिज्ञ तथा दूरदर्शी भी थे। मापने अपने अन्तिम समय में अपने वंशजों के लिए उपदेशों का एक बहुमूल्य संग्रह लिखा जो आज भी भापके वंशजों के पास है और जिससे आपकी राजनीतिज्ञता और विद्वत्ता का गहरा परिचय मिलता है। जहाजपुर की लड़ाई में घायल हो जाने से मेहता अगरचन्दजी का स्वर्गवास सम्वत् १८५७ की असाढ़ कृष्णा चतुर्दशी को हो गया। आपके स्वर्गवास से महाराणा भीमसिंहजी को बहुत दुःख हुआ। आपने इनके कामदार मौजीरामजी के पास मातमपुरसी के लिये एक कागज भेजा, जिस की नकल नीचे दी जा रही है: . सिद्धश्री मोजीरामजी महता जोग अपच मेहताजी श्रीशिवशरणे हुआ श्रीजी म्हांथी घणी बुरी कीधी, म्हांके तो श्री दाजी राज श्री बाई आज देवलोक हुआ है वारे कांधे कवर पणो हो थारे तो यूँ हूँ सो कई फिकर करो मती मनख होसैं तो थारो जतन ही करसैं घणी कांई लिखू लिख्यो न जाय सारी बात हिम्मत थी काम कीजो नराई मत लावजो सावण बुदी ५ सोमवार उपरोक्त सारे विवरण से मेहता अगरचन्दजी की राजनीति कुशलता, और महाराणा का उनपर भगाध विश्वास बहुत आसानी से प्रकट हो जाता है। ऐसे कठिन समय में इतनी बुद्धिमानी के साथ सारे ८२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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