SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रोसवाल जाति का इतिहास लाला महतावशाहजी के बधावामलजी, दीवानचन्दजी, ज्ञानचन्दजी तथा सरदारीमलजी नामक ७ पुत्र हुए। इनमें लाका सरदारीमलजी मौजूद हैं। आपके पुत्र रामलभायामलजी हैं । वधावामलजी के पुत्र प्यारेलालजी तथा रामलालजी हैं। दीवानचन्दजी के पुत्र खजांचीलालजी और ज्ञानचन्दजी के पुत्र कस्तूरीलालजी सराफी का काम काज करते हैं। लाला सोहनलालजी के जसवंतरामजी, अमीचन्दजी, मुल्कराजजी बी० ए० तथा कुजलालजी नामक ४ पुत्र हुए। लाला कुंजलालजी धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे। आपका तथा आपके बड़े भ्राता अमीचन्दजी का स्वर्गवास हो गया है। लाला मुल्कराजजी ने सन् १९२२ में बी० ए० पास किया । आप समझदार तथा शिक्षित सज्जन हैं। स्थानीय ब्रदडहुड के आप जीवित कार्यकर्ता हैं। लाला बदरीशाहजी के दत्तक पुत्र मोतीशाहजी हैं तथा दूसरे शादीलालजी हैं। शादीलालजी ने मैट्रिक तक शिक्षा पाई है । तथा सुशील व होनहार व्यक्ति हैं । लाला शंकरदासजी के पुत्र मुंशीलालजी. बनारसीदासजी, हजारीलालजीतथा विलायतीरामजी हैं। इसी तरह लाला चुन्नीलालजी के देसराजजी, रतन चन्दजी, प्यारेलालजी, बाबूलालजी, जंगेरीलालजी तथा रोशनलालजी नामक ६ पुत्र तथा लाला जमीतराजजी के मुनीलालजी, छोटेलालजी, चिरंजीलालजी तथा बेलीरामजी के हंसराजजी, जयगोपालजी, नगीनचन्दजी व चन्दनमलजी नामक पुत्र मौजूद हैं। यह परिवार श्वेताम्बर जैन स्थानकवासी आम्नाय का मानने वाला है। शादीलाल मुलखराज के नाम से इस परिवार का गुजरानवाला (पंजाब) में भादत का ब्यापार होता है। सेठ धर्मसी माणकचन्द बोरड, सुजानगढ़ इस परिवार के पूर्व पुरुष सेठ धर्मसीजी करीव १०० वर्ष पूर्व देशनोक नामक स्थान से चलकर सुजानगढ़ आये । आपके चार पुत्र सेठ माणकचंदजी, चुन्नीलालजी, उत्तमचन्दजी वगैरह हुए। इनमें से माणकचन्दजी बड़े नामांकित और व्यापारकुशल सजन थे। आप लोगों का स्वर्गवास हो गया। इनमें से केवल सेठ चुनीलालजी के मोतीलालजी और भूरामलजी नामक दो पुत्र हुए। आप लोगों का यहाँ की पंच पंचायती में अच्छा नाम था । व्यापार में भी आपने बहुत तरक्की की। आप दोनों का भी स्वर्गवास हो गया। सेठ भूरामलजी के लाभचन्दजी और तालालजी नामक पुत्र हुए। लाभचन्दजी का स्वर्गवास हो गया। इस समय मृतालालजी ही इस परिवार के व्यापार का संचालन करते हैं। आपने कलकत्ता में भी अपनी एक ब्रांच स्थापित कर उस पर कपड़े का व्यापार प्रारम्भ किया। इसमें आपको बहुत सफलता रही। आप यहाँ की म्युनिसिपैलेटी के मेम्बर रह चुके हैं। आपके पन्नालालजी नामक एक पुत्र है। आप भी मिलनसार और सजन व्यक्ति हैं। आपके जैनसुखजी, पृथ्वीराजजी और चम्पालालजी नामक तीन पुत्र हैं। इस समय आपका व्यापार सुजानगढ़, कलकत्ता, सरभोग (आसाम) इत्यादि स्थानों पर भिन्न २ नामों से जूट, कपड़ा, बेकिंग और सोना चाँदी का काम होता है। आप लोग तेरापंथी सम्प्रदाय के माननेबाके सजन हैं
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy