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________________ सेठिया सोठया गौत्र की उत्पत्ति ऐसा कहा जाता कि पाली नगर के पास ग्राम में रांका और बांका नामक दो राजपूत कृषि कार्य से अपना गुजारा करते हुए रहते थे। आचार्य श्री जिन वल्लभसूरि के उपदेश से इन्होंने जैन धर्म अङ्गीकार किया। इन्ही में से रांका से सेठी और बांका से सेठिया गौत्र की उत्पत्ति हुई। इन्हीं की संतानों से गोरा, देक, काला बोक भादि गौत्रों की उत्पत्ति हुई। सेठ अगरचंद भैरोंदान सेठिया, बीकानेर अब हम पाठकों के सामने एक ऐसे दिव्य व्यक्ति का चरित्र उपस्थित करते हैं; जिसने अपने जीवन के द्वारा व्यापारी समाज के सम्मुख सफलता और सद व्यय का एक बहुत बड़ा आदर्श उपस्थित किया है। जिसने व्यापारी जगत् में अपने पैरों पर खड़े होकर लाखों रुपयों की सम्पत्ति उपार्जित की है।' यही नहीं मगर उसका सुन्दर सदुपयोग भी किया है। यह महानुभाव श्रीभेदानजी सेठिया है। सेठ भैरोंदानजी-आपका जन्म संवत् १९३३ में हुमा । आपके २ बड़े एवम् एक छोटे भाई और थे। जिनके नाम क्रमशः सेठ प्रतापमलजी, अगरचन्दनी, और हजारीमलजी थे। जब आप केवल ८ वर्ष के थे तब ही आपके भाइयों ने आपको अलग कर दिया। इस समय भापके पास उतनी ही सम्पत्ति थी जितना कि आपको देना था । अतएव बड़ी कठिन परिस्थिति का अनुभव कर आपने ५००) सालियाना में ७ वर्ष तक बम्बई में नौकरी की । मगर इससे आपको संतोष न हआ। आप कर्मवीर व्यक्ति थे । शीघ्र ही आपने बम्बई को छोड़ कर कलकत्ता प्रस्थान किया। वहाँ जाकर आपने हनुमतराम भैरोंदान के नाम से साझे में रंग का व्यापार करने के लिये फर्म खोली। साथ ही मनिहारी का व्यापार भी करने लगे। देवयोग से यह व्यापार चमक उठा, एवम् इसमें आपने बहुत सफलता प्राप्त की। इसके बाद ही आपके भाई अगरचन्दजी फिर से आपके साथ शामिल हो गये और आप लोगों का व्यापार ए. बी० सेठिया एण्ड को० के नाम से चलने लगा। रंग की विशेष उन्नति होते देखकर आपने एक रंग का कारखाना दी सेठिया केमिकल वर्क्स के नाम से खोला। यह भारत में पहला ही रंग का कारखाना था। इसके पश्चात् आपका व्यापार वायु-वेग से उन्नति पाने लगा । आपकी बम्बई, मद्रास, कानपुर, देहली अमृतसर, करांची और अहमदाबाद में फमें स्थापित होगई। यही नहीं बल्कि आपने जापान में भी अपनी फर्म स्थापित की। मगर कुछ वर्षों पश्चात् बीमारी के कारण कलकत्ता और जापान के सिवा सब स्थानों से आपने अपना व्यवसाय उठा लिया। संवत् १९७५ में आपके भाई अगरचन्दजी का साझा आपसे अलग हो गया। __आपका धार्मिक जीवन भी बड़ा सराहनीय है। आपने अभी तक लाखों रुपये सार्व जनिक कार्यों में खर्च किये हैं। आपकी ओर से इस समय निम्नलिखित संस्थाएं चल रही हैं। (१) १८३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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