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________________ भासवाख आति का इतिहास सेठ मूरजमल सम्पतलाल गोलेछा, फलोदी फलोदी निवासी सेठ कपूरचन्दजी गोळेछा के पौत्र सेठ सूरजमलजी (वीरचन्दजी के पुत्र) ने बहुत समब तक बम्बई में कॉटन ब्रोकरशिप का कार्य किया। सम्बत् १९६९ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके सम्पतलालजी, नेमीचन्दजी तथा पेमराजजी नामक ३ पुत्र विद्यमान हैं। इन बन्धुनों में पेमराजजी संवत् १९८४ में नीलगिरी आये । तया सेठ मूलचन्द जेठमल नामक फर्म की भागीदारी में सम्मिलित हुए । आप समझदार सज्जन हैं। आपके पुत्र जेठमलजी, भवरलालजी, गुलाबचन्दजी तथा अनोपचन्दमी पढ़ते हैं। सेठ सम्पतलालजी तथा नेमीचन्दजी बम्बई में व्यापार करते हैं। सम्पतलालजी के पुत्र सोहनराजजी उत्साही युवक हैं। तथा समाज सुधार के कामों में दिलचस्पी रखते हैं। नाग सेठिया नाग सेठिया गोत्र की उत्पत्ति ऐसा कहा जाता है कि नाग सेठिया गौत्र की उत्पत्ति सोलंकी राजपूतों से हुई है। मथुरा नगर का राजा नर वाहन सोलंकी को किन्ही जैनाचार्य ने प्रतिबोध देकर जैनी बनाया। तदुपरांत नेणा नगर में जो वर्तमान में गोदवाद प्रान्त के अन्दर नाणाबेड़ा के नाम से प्रसिद्ध है उक्त नरवाहनजी को लाकर संवत् १००१ के लग भग भट्टारक श्री धनेश्वर-सूरिजी ने जैन धर्म का प्रतिबोध किया। उस समय बारह राजा विद्यमान थे,जिनसे जुदे बारह गौत्रों ( ठाकुर, हंस, वग, लकड़, कवाडिया, सोलंकी सेठिया, धर्म, पचलोदा, तोलेसरा और रिखब) की स्थापना हुई। इसी समय सोलंकी सेठिया गौत्र भी स्थापित हुभा । - यह भी किम्बदचि है कि संवत् १४७२ के करीब उथमण गाँव में इस सोलंकी सेठिया वंश में सेठ भर्जुनजी हुए। भापके घर पर एक समय तेले के पारने के दिन जल्दी चूल्हा सिलगाया गया। चूल्हे में नागदेव बैठे हुए थे उन पर अग्नि पड़ी जिससे वे क्रुद्ध हुए। ठीक उसी समय उनकी पुत्र बधू दुध लेकर आ रही थी। आपने नागदेव को अग्नि से सन्तप्त देख कर दूध डाल कर आग को शांत किया । यह देखकर नागदेव आपसे बहुत प्रसन्न हुए और शुभ आशीर्वाद दिया। इसी समय से नाग सेठिया" गौत्र की उत्पत्ति हुई। और तभी से इस गौत्र में नागदेव की पूजा जारी की गई। कहते हैं की उसी समय से लड़की के ब्याह के समय नाग और नागणी को फूल पहराने की प्रथा चालू हुई जो आजतक पाली जाती है। यह गौत्र तीन तरह के पुकारी जाती है। (१) सोलंकी सेटिया (२) नागदा सोलंकी सेठिया (३)नाग सेठिया । १८०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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