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________________ भावक | मैं आप कॉफी द्रव्य खर्च करते रहते हैं । आपकी एक दुकान मद्रास में फ़ेसरीचंद मगनमल के नाम से १९२२ में स्थापित हुई । जिस पर बैकिग का काम होता है। दूसरी पटना में मंगलचंद शिवचंद के नाम से संवत् १९६३ में स्थापित हुई इसकी एक शाखा मुकामा में भी है। पटियाला स्टेट के मोरमड़ी नामक स्थान में राठी वंशीलालजी के साझे में आपकी एक जिनिंग फैक्टरी भी चल रही है । आप बड़े सत्यप्रिय हैं। कुँबर शिवचंदजी - सेठ मंगलचन्दजी के पुत्र कुँवर शिवचन्दजी का जन्म १९५९ में हुआ । आपने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की । आप योग्य उत्साही और प्रतिभाशाली नवयुवक हैं । आप जतनलालजी के साझे में मेसर्स शिवचन्द जतनलाल के नाम से कपड़े का व्यापार करते हैं । सेठ कपूरचन्दजी के पुत्र करनीदानजी थे इनका जन्म सं० १८६८ और मृत्यु सं० १९३५ में हैदराबाद में हुई थीं। यह बुद्धिमान् तथा साहुकारी लाइन में हुशियार थे, आप जवाहरात का व्योपार करते थे, और उस जमाने में जवाहरत के अच्छे परिक्षक माने जाते थे यह देसणोंक (बीकानेर) ले फलौदी आ गये थे इनके पुत्र पन्नालालजी हुए सं० १९४१ में इनका देहान्त हुआ । इनके पुत्र जवारमलजी थे। इनका देहान्त संवत् १९६५ में हुआ । इनके ३ पुत्र समीरमलजी, सुखलालजी, और मूलचन्दजी हैं, जो खगडिया (मुंगेर) में हस्तीमल, सुखलाल के नाव से दुकान चलती है, उसमें पार्टनर हैं। यह खानदान शुरू से आज तक श्वेताम्बर जैन, मूर्ति पूजक है । झाबक लूणकरणजी का खानदान, फलोदी शाबक शाबरसिंहजी के कई पीढ़ियों बाद जीवराजजी, मानमलजी व अखेचन्दजी हुए, जीवराजजी मानमलजी का परिवार तो जीवा माना का परिवार और भखेचंदजी का परिवार मड़िया शाबक कहाया । अखेचन्दजी की कई पीढ़ियों बाद सरूपचन्दजी और उनके पुत्र कस्तूरचन्दजी हुए। शावक कस्तूरचन्दजी के रामदानजी और चुनीलालजी नामक २ पुत्र हुए, इनमें रामदानजी ने संवत् १९२२ में फलौदी में कपड़ा तथा लेनदेन की दुकान खोली जो इस समय भली प्रकार काम कर रही है। संवत् १९६८ में इनका अंतकाल हुआ । शाबक चुनीलालजी के कोई सन्तान नहीं हुई। शाबक रामदानजी के नवलमलजी हीरचंदजी तथा तेजमलजी नामक ३ पुत्र हुए। इनमें से तेजमलजी, झाबकों की दूसरी फली में झाबक पीरदानजी के नाम पर दत्तक गये । * बक नवलमलजी का अंत काल संवत १९५५ में हो गया इनके पुत्र लूणकरणजी तथा जीवण चंदजी हुए, इनमें से जीवनचन्दजी, हीरचंदजी के नाम पर दत्तक गये । साबक लूणकरणजी के चम्पालाल जी और गुमानमलजी नामक पुत्र हैं, जिनमें चम्पालाजी, तेजमलजी के नाम पर दत्तक गये हैं । जीवणचन्द ४६३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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