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________________ मौसवाल जाति का इतिहास का जन्म सम्बत् १९१ में हुआ। मापके यहाँ बेलगाँव (महाराष्ट्र) में मूलचंद घीसूलाल के नाम से कपड़े का थोक व्यापार होता है । यह दुकान ओसवाल पोरवाल समाज की मुकादम है। घीसूलालजी को परम ध्यान में अच्छा मन है। इनके बड़े पुत्र जीवराजजी व्यापारिक काम देखते हैं। तथा इनसे छोटे उगमरानजी और विशनराजजी है। सेठ हेमराजजी का परिवार-सेठ हेमराजजी का स्वर्गवास संवत् १९६९ में हुआ। इनके पुत्र पनराजजी का जन्म १९४० में हुआ । आपके यहाँ बेलगाँव में कपड़े का व्यापार हेमराज पनराज के नाम से होता है । इनके पुत्र सोहनराजजी तथा दौलतराजजी हैं। ___सेठ मुलतानमलजी का परिवार-आपका स्वर्गवास संवत् १९६९ में हुआ । आपके पुत्र हरकमलजी का जन्म १९४५ में हुआ। आपकी दुकान बेलगाँव तथा सोजत में अच्छी प्रतिष्ठित मानी जाती है । आपने बेनियन एण्ड कं० की कपड़े की एजेन्सी हुबलो में ली है । आपके पुत्र लालचन्दजी १७ साल के हैं । तथा दुकान के काम काज में भाग लेते हैं। इनसे छोटे सूरजमलजी तथा चुनीलालजी हैं। इस दुकान की शाखायें हुबली तथा सोजत में हैं। सेठ मूलचन्द घीसूलाल दुकान के 1५ सालों से मुनीम सिंघवी मोतीलालजी (मूलचंदोत) सोजत निवासी हैं । आपका खानदान भी सोजत में नामांकित माना जाता है । सेठ हरकमलजी की दुकान के भागीदार घीसालालजी सियाटिया सोजत निवासी हैं । आपके पिताजी संवत् १९५३ से यहाँ काम करते थे। सेठ सुजानमल चांदमल कोचर, त्रिचनापल्ली यह परिवार फलोधी का निवासी है। सेठ बेनचंदजी कोचर फलोधी में रहते थे। इनके पुत्र रामचंदजी थे। हरिचन्दजी के पुत्र सुजानमलजी देश से व्यापार के निमित्त बंगलोर आये । तथा आईदान रामचंद के यहाँ मुनीमात करते रहे। इसके पश्चात् आप पल्टन के साथ त्रिचनापल्ली आये । उस समय सेठ आनंदरामजी पारख, रावतमलजी के यहाँ थे । इन दोनों सजनों ने मिलकर पल्टन के साथ तथा सर्व साधारण के साथ देनलेन का धंधा शुरू किया । आप 'रेजिमेंटल बैंकर्स के नाम से बोले जाते थे । आप दोनों सजनों ने व्यापार में सम्पत्ति उपार्जित कर त्रिचनापल्ली में अपनी उत्तम प्रतिष्ठा स्थापित की । कई अंग्रेज आफीसरों से आपका अच्छा मेल था। संवत् १९७४ में सेठ सुजानमलजी कोचर स्वर्गवासी हुए। तथा संवत् १९८० में आपका व्यापार सेठ आनंदरामजो पारख से अलग हुआ। आपके चांदमलजी तथा अमरचंदजी नामक पुत्र हैं। चांदमलजी का जन्म सन् १९०६ में तथा अमरचन्दजी का १९१६ में था।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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