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________________ ( ६ ) यह एक आश्चर्य बात है कि उपरोक्त प्रतिज्ञाके बाद हो भीखणजी का बुखार उतर गया । उन्होंने श्रावकोंसे कहा कि उनका कथन युक्तियुक्त है और साधुवर्गका आचार व प्ररूपणा अशुद्ध है पर उन्होंने वचन दिया कि आचार्यको समझा कर शुद्ध मार्गकी प्रवृत्तिके लिये चेष्टा करेंगे । इससे श्रावक लोग उन पर विशेष श्रद्धालु बने । उन्होंने सत्यासत्यका निर्णय करनेके लिये फिरसे शास्त्रोंके गम्भीर अध्ययनका विचार किया । और ३२. सूत्रों को ही दो दो बार खूब अच्छी तरहंसे विचार पूर्वक पढ़ा | अ रघुनाथजीका पक्ष शास्त्र सम्मत न होनेमें उन्हें तनिक भी शंका न रही। भिखणजीने जिनोक्त मार्ग अङ्गीकार करनेकी प्रतिज्ञा कर ली थी पर इससे पाठक यह न समझें कि उन्होंने रघुनाथजीके शिष्य न रहनेकी ठान ली थी अथवा किसी नये मतके आचार्य ही वे बनना चाहते थे । जहां सच्चा मार्ग हो वहां गुरु रूपमें या शिष्य रूपमें रहना उनके लिये समान था । आत्म-कल्याणका प्रश्न ही उनके सामने मुख्य था इसलिये शिष्य रह कर भी वे इसे प्राप्त कर सकते तो उन्हें कोई आपति न थी । इसी लिये रघुनाथजीकी पक्षको गलत समझ कर भी उन्होंने उसी समय रघुनाथजीसे अपना सम्बन्ध न तोड़ दिया। बल्कि उलटा उन्होंने यह विचार किया कि रघुनाथजीसे शास्त्रीय आलोचना करूंगा और उन्हें और उनके सम्प्रदायको हर प्रकारसे शुद्ध मार्ग पर लानेका प्रयत्न करूंगा। उनसे मिलने के पहले अपने भविष्य के सम्बन्धमें उन्होंने कोई निश्चय करना उचित न समझा । इस समय भिखणजीने जिस विनय और धीरजका पिरचय दिया वह अवश्य ही उनके आन्तरिक वैराग्य और धर्म भावनाओंका प्रतिबिम्ब था । चातुर्मास समाप्त होने पर भिखणजी रघुनाथजीके पास गये और विनम्रता पूर्वक उनसे आलोचना शुरू की। उन्होंने कहा कि हम लोगोंने आत्म-कल्याणसे लिये ही घर-बारको छोड़ा है अतः झठी पक्षपात छोड़कर सच्चे मार्ग को ग्रहण करना चाहिये । हमें शास्त्रीय वचनोंका प्रमाण मान कर
SR No.032674
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Terapanthi Sabha
PublisherMalva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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