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________________ ( १२ ) आचार्य पदकी जिम्मेवारी उठाने लायक भारीमालजीसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं । मैं सर्व साधुओंको आदेश करता हूं कि वे भारीमालजीकी आज्ञामें वर्ते। इनकी दोक्षा १० दस वर्षकी अवस्थामें ही हो गयी थी, वे बाल ब्रह्मचारी थे । आपका देहान्त ७५ वर्षकी अवस्थामें मेवाड़के राजनगरमें मिती माघ वदी ८ संम्वत् १८७८ हुआ था। तृतीय आचार्य तृतीय आचार्य श्री श्री १००८ श्री श्री रायचन्दजी स्वामीका जन्म बड़ी राबलियां ग्राममें संम्वत् १८४७ में हुआ था । और राजनगरमें उनको पाटगद्दी मिली थी। उनके पिताका नाम चतुरजी बम्ब था। ये ओसवाल जासिके थे। उनकी माताका नाम कुसलांजी था। ये भीखणजीके शासन कालहीमें नाबालक अवस्थामें तीब्र बैराग्यसे दीक्षित हो गये थे। स्वामी भीखणजीके देहावसानके समय इनकी उम्र छोटी ही थी। इन्होंने अपने शासनकालमें ७७ साधु और १६८ साध्वियांको दीक्षित किया था। इनका देहान्त ६२ वर्षको उमरमें माघ वदी १४ संम्वत् १६०८ को रावलियाँमें हुआ। आपने स्वामीजी श्री जितमल्लजीको भावी आचार्यके पदके लिये मनोनीत किया था। चतुर्थ श्राचार्य प्रख्यात जीतमल्लजी स्वामी चतुर्थ आचार्य श्री श्री १००८ श्री श्री जीतमलजी स्वामीका जन्म सं० १८६० में आसोज सुदी १४ को मारवाड़के रोहित ग्राममें हुआ था। उनके पिताका नाम आइदानजी गोलेछा और माताका नाम कलुजी था। इनकी दीक्षा नव वर्षकी उम्रमें जयपुरमें हुई थी। भीखणजीको छोड़ कर अन्य सब आचार्योंकी तरह ये भी बाल ब्रह्मचारी थे और बाल्यावस्थामें ही तीन वैराग्यसे अपनी माता तथा दो भाईके साथ दीक्षा ली थी। जीतमलजी महाराज असाधारण विद्वान और प्रतिभाशाली कवि थे। केवल ग्यारह वर्षकी अवस्थासे ही उन्होंने कविताएं रचना करनी शुरू कर दी थी। उनकी कविताओंकी संख्या तीन लाख गाथाओंके लगभग है। इनका शास्त्रीय
SR No.032674
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Terapanthi Sabha
PublisherMalva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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