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[ ५२ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क के अन्य शास्त्रों का पढ़नेवाला ब्राह्मण शूद्र कहलाता है। धर्माधर्म निर्णेता वेदज्ञ हो। वेदज्ञ को ही दान देना । आततायी के लक्षण । आचमन कब कब करना चाहिये। भूमि में गड़े हुए धन के सम्बन्ध में भूमि शोधन एवं पात्र शोधन
का वर्णन (१-६४)। ४ मधुपर्कादिषु-पशुहिंसनवर्णनम्। १४८० शवाशौचवर्णनम् ।
१४८१ ब्राह्मणादि वर्ण जिस प्रकार वेदों में बताये हैं उनका विशदीकरण। मधुपकै का विधान, अशौच क्रिया के नियम, अशौच काल का वर्णन (१-३१)।
आत्रेयी धर्म वर्णनम् ।
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प्रथम स्त्री का कतव्य वह अपनी शक्ति का हास न होने दे एवं स्वतन्त्र न रहे, पिता, पति तथा पुत्रों की देख-रेख में रहे। रजस्वला काल में रहन-सहन तथा इन्द्र ने पाप देने के अनन्तर स्त्रियों को जो वरदान दिया उसका दिग्दर्शन ।