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[ ६६ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क ७ मुक्ति को प्राप्त हो जाता है। हारीत ऋषि कहते
हैं कि मैंने संक्षेप से ४ वर्ण एवं ४ आश्रमों के धर्म इस उद्देश्य से बताये हैं कि मनुष्य अपने वर्ण और . . आश्रम के धर्म पालन से भगवान मधुसूदन का पूजन कर वैष्णव पद को पहुंच जाता है (१२-२१)।
वृद्धहारितस्मृति के प्रधान विषय १ पश्वसंस्कार प्रतिपादनवर्णनम्
६६४ राजा अम्बरीष हारीत ऋषि के आश्रम में गये। वहाँ जाकर हारीत से परम धर्म, वर्णाश्रम धर्म, त्रियों का धर्म तथा राजाओं के लिये मोक्ष मार्ग पूछा ( १-६ )। उपर्युक्त प्रश्न के उत्तर में हारीत ने कहा कि मुझे जो ब्रह्माजी ने बताया है वह मैं आपको कहता हूं। नारायण वासुदेव विष्णुभगवान सृष्टिके विधाता हैं अतः उन भगवान का दास होना ही सबसे बड़ा धर्म है ( ७-१६ )। मैं विष्णु का दास हूं यही भावना चित्त में रखना । नारायण के जो दास नहीं होते हैं वे जीते जी चाण्डाल हो जाते हैं। इसलिये अपनेको भगवान