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________________ अध्याय पृष्ठाङ्क [ ४८ ] प्रधानविषय २६ आचार्य (गुरु) कर्तव्यता विधान वर्णनम्- ४६० इसमें आचार्य, ऋत्विक के कर्तव्यों का वर्णन है। ३० वेदाध्ययनेऽनध्यायादि वर्णनम्- ४६१ इसमें श्रावण महीने में उपाकर्म करने का विधान और अन्त में उपाकर्म करने का और शिष्य को उत्पन्न करनेवाले पिता से दीक्षा देनेवाले गुरु का विशेष महत्त्व और शिष्य के लिये आमरण गुरु सेवा का निर्देश है । ३१ मातापित गुरूणाम् शुश्रूषा विधान वर्णनम्- ४६३ मनुष्य के तीन अति गुरु होते हैं। माता, पिता, आचार्य इनकी नित्य सेवा और उनकी आज्ञापालन का वर्णन है । ३२ राजा-ऋत्विक-अधर्मप्रतिषेधी-उपाध्याय-पितृ व्यादीनामाचार्यबद्वयवहारवर्णनम्, तेषां पत्न्योऽपि मातृवत् माननीयास्तच्छु,तिः- ४६४ राजा, ऋत्विक् , उपाध्याय, चाचा, ताऊ, मामा, नाना, श्वशुर और ज्येष्ठ भ्राता इनका सम्मान करना चाहिये। अन्त में बतलाया है कि ये क्रम से विद्या, कर्म, अवस्था, बन्धुत्व, धन इनके मान के स्थान हैं।
SR No.032667
Book TitleSmruti Sandarbh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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