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________________ ___ शातातप ने किस पाप के करने से क्या रोग होता है उसका विशेष वर्णन किया है । रोगोत्पत्ति के विषय में यह बताया कि अलग अलग रोग अलग अलग पापों से होते हैं। साथ ही उन पापों से निवत्ति होने का उपाय भी बताया है जिससे रोग शान्त हो जाय। शंख ने संस्कारों की आवश्यकता पञ्च महायज्ञ आदि धार्मिक गहस्थ-जीवन का विस्तार किया तथा वानप्रस्थ व सन्यास की विधि बतलाई। लिखित ने इष्टापूर्त का माहात्म्य बताया है "इष्टेन लभते स्वर्ग पूर्तेन मोक्षमाप्नुयात्" यज्ञ, धर्मशाला, वापी, कूप, तड़ाग को धर्म की प्रधानता कही है। _ 'कलौ पाराशरी स्मृता' इस युग में पराशर की स्मति का स्थान बताया । पराशरजी ने बद्रिकाश्रम तपोभूमि में शौनकादि ऋषियों के साथ आये हुए व्यास जी को कलियुग के धर्म में अत्यन्त जागरुकता बताई । कलियुग में वर्णाश्रम धर्म की मर्यादा से भ्रष्ट होने पर तत्काल पतन होना बताया है और दान की प्रधानता कलियुग की धर्मनिष्ठा बताई है। कलियुग में कृषि कर्म को प्रधान धर्म बताया है। कृषि कर्म के साथ गौ का निःस्वार्थ पालन धर्म और बलिवर्द बछड़े का पालन-पोषण तथा दान का बड़ा माहात्म्य बताया है। द्विजमात्र को कृषिकर्म करने आदेश दिया है --- "कृषेरन्यतमोधर्मो न लभेत्कृषितोऽन्यथा। न सुखं कृषितोऽन्यत्र यदि धर्मेण कर्षति ॥" खती के समान और कोई धर्म नहीं है यदि स्मतियों में बताये नियम धर्म से खेती चलावे तो कृषि महान् यज्ञ है जिसके द्वारा कीट पतङ्ग पश पक्षी सभी की परितृप्ति होती है। कृषि यज्ञ में यज्ञ शिष्टाशीः वह ही पुरुष होंगे जो कीट पतंगादि से लेकर ऋषि मुनि तपस्वी सबके लिये अन्न का भाग निकाल कर फिर अवशिष्ट को अपने गृहस्थ के काम में ले। धर्मपूर्वक खेती का यही रहस्य है। श्रीमद्भगवद्गीता में-'यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मच्यन्ते सर्वकिल्विषैः कहकर कितना बड़ा महत्त्व बताया गया है। इसीलिये महर्षियों की उञ्छवृत्ति का विधान भी चरितार्थ होता है; महर्षि कणाद् इसके ज्वलन्त प्रमाण हैं।
SR No.032667
Book TitleSmruti Sandarbh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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