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________________ तो केवल उपकेशपुर में ही ३८४००० घर थे और उनमें लाखों नर नारी रहते थे जिन्होंने कि जैन धर्म को स्वीकार किया। __. आचार्य रत्नप्रभसूरि चौदह पूर्वधर थे। उपयोग लगाने से भूत, भविष्य, और वर्तमान की सब बातों को केवली के सदृश जानते थे। अतएव आचार्य श्री ने भविष्य के लाभाऽलाभ व वर्तमान की परिस्थिति को लक्ष्य में रख कर ही उन नूतन बनाये जैनों की एक सार्वजनिक संस्था स्थापित करदी और उसका नाम "महाजन संघ" रख दिया। इस संस्था को कायम करने में आप श्री ने और भी अनेक फायदे देखे थे जैसे कि: (१) जिस समय प्रस्तुत संस्था स्थापित की थी उसके पूर्व उस प्रान्त में क्या राजनैतिक, क्या सामाजिक, और क्या धार्मिक सभी कार्यों की संकलन तूट कर उनका अत्यधिक पतन होगया था । अतः इन सबका सुधार करने के लिये ऐसी एक संगठित संस्था की परमावश्यकता थी, और उसी की पूर्ति के लिये आपका यह सफल प्रयास था। (२) संस्था कायम करने के पूर्व उन लोगों में मांस मदिरा का प्रचुरता से प्रचार था। यद्यपि आचार्य श्री ने बहुत लोगों को दीक्षा के समय इस दुर्व्यसन से मुक्त कर दिया था तथापि सदा के लिये इस नियम को दृढ़ता पूर्वक पालन करवाना तथा अन्यान्य समाजोपयोगी नये नियमों को बनवा कर उनका पालन करवाने के लिये भी एक ऐसी संस्था की आवश्यकता थी जिसे सूरिजी ने पूर्ण कर दिया। (३) नये जैन बनाने पर भी अजैनों के साथ उनका व्यवहार बंद नहीं करवाया था, क्योंकि किसी भी क्षेत्र को संकुचित
SR No.032654
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1937
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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