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________________ महाराजा सम्प्रति के शिलालेख २६ प्रो० हुल्टश लिखते हैं७५ " कि उन्होंने किस लिए ( उनकी मान्यता लेख खुदवाने वाला अशोक है इसलिये अशोक को लिखा है ) यह २५६ का अङ्क व्यवहृत किया है, अब तक यह नहीं जाना जा सका है" फिर स्वयं लिखते हैं कि डा० प्लीट साहब ने जो यह लिखा है कि ( ज० राँ० ए० सो० १६१० पृ० १३१-७) बुद्ध निर्वाण के बाद २५६ वर्ष बीत गया था, इसलिए २५६ रात्रि पूजा की है, इस सूचना के साथ मैं किसी भी भाँति सहमत नहीं हूँ । अब जो २५६ के अंक को बुद्ध सं० के रूप में मान लें तो बुद्ध का स्वर्गवास ई० पू० ५२० है, उस हिसाब से भी ( ५२०२५६ ) २६४ अर्थात् अशोक की मृत्यु के ६ वर्ष बाद का काल आता है और बुद्ध के निर्वाण के हिसाब से ( ५४४-२५६ ) ई० पू० २८८ अर्थात् अशोक के राज्य भार छोड़ देने का काल आता इससे यह स्पष्ट सिद्ध है कि शिला लेखों तथा स्तम्भ लेखों के साथ अशोक का कोई सम्बन्ध ही नहीं है । ( ७२ ) इन्स्क्रीप्शन्स श्राफ़ अशोक पु० १ पृ० XLVII (७६) बात यह है कि प्रियदर्शन राजा को गद्दी पर बैठे ३२ ॥ वर्ष ( ३० + २३ श्रढीतिसानि देखिए रूपनाथ का लेख ) हुए थे, उस समय अर्थात् ई० पू० ( ३०३ - ३२ ॥ ) २७० के साल में उसने ये लेख खुदवाए थे । और उसके इस खुदवाने का कारण था । और ईसा पूर्व २७० अर्थात् महावीर संवत् २५६ का साल । स्वयं जैनधर्मी होने के कारण उसने महावीर संवत् का उपयोग किया था । ( ७७ ) देखिए – पृ० ( ई ) - ( ७८ ) नीचे के प्रमाण नं० १० को देखिए ।
SR No.032648
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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