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________________ २२ प्रा० जै० इ० दूसरा भाग एण्टीगोनस के साथ अपना बल आजमाने के लिए स्वदेश की ओर लौटा। ___ ऊपर देख चुके हैं कि सेण्ड्रोकोट्स चन्द्रगुप्त नहीं बल्कि उसका पौत्र अशोक है। इससे दो राज्य अपने आगे बढ़ने के लिए रहे, जिनका समय ६० वर्ष (५७)है। उसी तरह सारे खड़ा लेखों के कर्ता का समय भी अशोक को बदल कर उससे ६० वर्ष बाद पीछे खींचकर जिस शासन-कर्ता का राज्य मगध पर होगा उसे ही स्वीकार करना पड़ेगा। जिसे अपने विशेष साक्षियों द्वारा आगे इसी लेख में सिद्ध करूँगा। ___ यहाँ तो केवल इतना ही कह कर सन्तोष करूँगा कि जैन धर्म भी इस विषय में ऐसा ही बतलाता है। जैनधर्म के परम श्रद्धालु भक्तराज के रूप में दो मनुष्यों के नाम प्रसिद्ध हैं, पहले मौर्यवंशी सम्राट् सम्प्रति और दूसरे चौलुक्य वंशी राजा कुमारपाल, उसमें भी राज्य प्रदेश के विस्तार से या जैनधर्म के कार्यो की दृष्टि से तो कुमारपाल सम्प्रति के सामने तो कुछ नहीं के बराबर है। सम्राट् सम्प्रति ने (अ५७) तो कुमारपाल राजा की अपेक्षा आगे बढ़कर जैनधर्म के प्रचार करने में सतत एवं सबल प्रयत्न किया था साथ ही सातों क्षेत्रों (मूर्ति, मन्दिर, पुस्तक,साधु, साध्वी, श्रावक और भाविका) को उत्तेजना देने में भी अपनी शक्ति लगाई थी। सारांश यह कि जैनधर्मानुयायी पुरुषों में (५७) चन्द्रगुप्त के २४) । कुल मिलाकर ५७ अर्थात् लगभग बिन्दुसार के २६ ६० वर्ष कहा जा सकता है। अशोक के १) (५७ श्र) मिलाइये इस लेख की टीका नं० १५ को।
SR No.032648
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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