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________________ www २० प्रा० जै०इ० दूसरा भाग बचाने के लिए मुट्ठी बाँधकर भागा,५१ और थककर जब सोया हुआ था उस समय एक बड़ा सिंह आगयाथा और उस भगे हुए आदमी के शरीर के पसीने को चाट रहा था।५२ वह ज्योंही जगा सिंह ने चुपचाप अपना रास्ता लिया। इस घटना को शुभ शकुन मानकर वह स्वयं राज्यगद्दी प्राप्त करने के लिए उत्साहित हुआ था और डाकुओं के झुण्ड इकट्ठे करके उस समय की राज्य-सत्ता छावनी में बिना किसी बोलचाल हुए या बिना कारण के ( कारण कि नन्द्रुम शब्द नन्द की द्वितीया विभक्ति का रूप है और नन्द नाम हिन्दू राजा का नाम है परदेशी राजा का नाम नहीं) अपमान करने का कारण क्या है ? इससे यह साफ़ सिद्ध होता है कि नन्द को हराकर चन्द्रगुप्त मगध की गद्दी पर आया था इसे साबित करने के लिए कूट पीटकर स्वेच्छापूर्वक ही नन्द्रुम शब्द को अलेक्जेण्डूम कर छोड़ा है। (११) एक राज्य कर्ता को अपनी छावनी में सलाह करने के लिए बुलाना, और उसे वह न माने उसे मार डालने की आज्ञा देना ही इसे सिद्ध करता हैं कि अलेक्जेण्डर स्वयं कैसा जनूनी रहा होगा और उसे न्याय अन्याय का कैसा विचार रहता रहा होगा। (१२) एक मनुष्य वह चाहे कैसा ही वीर क्यों न हो, जब उसे सलाह की गोष्टी के लिए बुलाया गया हो उस समय तो वह आखिर अकेला ही रहेगा! फिर उस समय उसे सिवा भाग जाने का उपाय ही क्या ? ऐसे कृत्य सिकन्दर के अनुचित कहे जा सकते हैं उल्टे महत्वाकांक्षी स्वभाव के स्थान पर उसे जुल्मी स्वभाव वाला कहा जा सकता है, कारण कि सामने के अकेले मनुष्य को मार डालना कहाँ की राजनीति कही जा सकती है ? ग्रीक लेखक अपने बादशाह को बड़ा बतलाने के लिए चाहे जो विशेषण प्रयोग में लावें, किन्तु सत्य शोधक तो इन बातों से दूसरा ही कुछ अनुमान करेंगे।
SR No.032648
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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