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________________ ( ४६ ) धर्मनिष्ठ लोग अपना धन मौजूदा प्राचीन मूर्तियों और मन्दिरों की खोज, जीर्णोद्धार, रक्षा और सुप्रबन्ध में लगावें । ७२ – धार्मिक वात्सल्य, सामाजिक प्रेम और सहयोग की बुद्धि के लिये श्रन्तर्जातीय, अन्तर साम्प्रदायिक विवाह और सहयोग की श्रावश्यकता है । १९४६ ७४ – अगस्त १६४२ के राष्ट्रीय श्रान्दोलन में मंडला निवासी उदय चन्दजी, गढ़ाकोटा निवासी सोहनलालजी, तथा अनजान जैन वीरों और शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि | ७५ – महावीर जयन्ती की सार्वजनिक छुट्टी के लिये केन्द्रीय, प्रान्तीय तथा देशीय रजवाड़ों से अनुरोध । ७६ - अखण्ड जैन समाज की महत्वाकांक्षा की प्रतीक एक जैन ध्वजा का निश्चित रूप स्थिर किया जाय । ७७ - सामूहिक विवाह का प्रचार मण्डल अधिवेशन पर ऐसे विवाहों का आयोजन | ७८ - महामण्डल के अनुशासन में, श्री एम० बी० महाजन वकील अकोला द्वारा जैन श्रोवरसीज बोर्ड, एजुकेशन बोर्ड, ईकोनोमिक पोलिटिकल, वालंटियर बोर्ड की स्थापना । -- ७६ - जहाँ तक बने, पच कल्याणक विम्ब प्रतिष्ठा, गजरथ श्रादिः बन्द किये जायें, जहाँ कहीं नया मन्दिर बनाया जाय, वहाँ पूर्व प्रतिष्ठित मूर्ति किसी अन्य मन्दिर से लेकर विराजमान की नाय, पूर्व स्थापित मन्दिर के पंचों को नये मन्दिर के लिये मूर्ति देने में गर्व का अनुभव करना चाहिये । ८० • खेती, गोपालन के उद्योग को अपनाकर शुद्ध खाद्य और अन्य उपयोगी वस्तु श्रधिकाधिक उपजाई जावं ।
SR No.032645
Book TitleBharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Prasad
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1947
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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