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पाँचवाँ अधिवेशन
पाँचवाँ अधिवेशन दिल्ली निवासी सुलतानसिंहजी के सभापतित्व में दिसम्बर १९०३ में बड़े समारोह के साथ हिसार में सम्पन्न हुआ । इसकी आयोजना स्वर्गीय बाबू नियामतसिंह ने की थी । प्रवेशद्वार पर मोटे अक्षरों से लिखा हुआ था
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नक्कारा धर्म का बजता है, श्रए जिसका भी चाहे । सदाकत जैनमत की श्राजमाए जिसका जी चाहे ॥
आर्य समाजी भाइयों से खुले दिल से सम्मान - पूर्वक प्रश्नोत्तर होते रहे । चिरंजीलालजी ने अनाथालय की आर्थिक सहायतार्थ हृदय-स्पर्शी अपील की। जिसका समुचित प्रभाव सभा पर पड़ा और अनाथालय जो ऐसोसियेशन ने मेरठ में कायम किया था हिसार में श्रा गया। अब वही अनाथालय दिल्ली में सफलतापूर्वक अपने निजी भवन में काम कर रहा है । श्वेताम्बर कान्फरेन्स ने सहयोग का बचन दिया !
विवाह आदि सामाजिक तथा धार्मिक उत्सवों पर सादगी और मितव्ययता से काम लेने के प्रस्ताव किए गए ।
सन १९०४ से “जैनगनट" अंग्रेजी में जगमन्दर लाल जैनी के सम्पादकत्व में स्वतन्त्र रूप से निकलने लगा । अगस्त १९०८ से जनवरी १६०६ तक श्री० ए० बी० लट्ठे ने मदरास से सम्पादन किया । फरवरी सन् १९०६ से १६१० तक श्री सुलतानसिंह वकील मेरठ उसके सम्पादक रहे । जनवरी १६११ से मार्च १६१२ तक फिर श्री जे० एल० जैनी सम्पादन करने लगे । उनके लंदन चले जाने पर १६१२ से १६१८ तक मैं सम्पादक रहा । १६१६ में वकालत का व्यवसाय छोड़ कर मैं लखनऊ से बनारस चला गया। जैनगजेट को श्रीयुत मल्लिनाथ मदरास निवासी को सौंप दिया । मैं १६३४ में फिर लखनऊ वापस हुआ; और जैनगजेट को श्री मल्लिनाथ से वापस ले लिया । १६३४ से बराबर अब तक अनिताश्रम लखनऊ से प्रकाशित हो रहा है । .