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________________ ( २ ) में अन्य विषयों के साथ जैनधर्म के संबंध में भी कुछ लिखा हुआ था (देखो परिशिष्ट नं० १)। लेखक महोदयों को छोटे बालको को "श्री भगवान् महावीर स्वामी और जैनधर्म" का साधारण परिचय कराना ही अभीष्ट था । परन्तु इस चार पृष्ठ के छोटे से लेख में भी अनेक अशुद्ध और भ्रमोत्पादक बातें थीं,अतः इस विचार से कि छोटे बालकोंके कोमल और स्वच्छ हृदय पर कोई मिथ्या संस्कार न बैठ जावे हमने उचित समझा कि विक्ष लेखकों को वस्तुस्थिति से परिचित करके उन्हीं से इसका संशोधन कराया जावे। हमने दोनों सजनों की सेवा में प्रार्थना की। परन्तु शोक है कि उन्होंने उसका कोई उत्तर न दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया यह हम नहीं कह सकते। - जब हमने इस तरह काम निकलता न देखा तो अपनी उस चिट्टीको छपवाकर पंजाब और मध्यप्रांत में वितरण करने का निश्चय कर लिया जिस से सर्वसाधारण को इस लेख के दोषों का ज्ञान हो जावे । उस चिट्ठी की अक्षरशः नकल नीचे दी जाती है। SHRI ATMANAND JAIN SABHA, AMBALA CITY. .... MARCH 10th, 1925. The Minister of Education, the Director of Public Instruction, Deputy Directress of Public Instruction,
SR No.032644
Book TitleBharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagmalla Jain
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year1928
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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