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________________ (५) (८) पृष्ठ ४१-पंक्ति 8-"श्री देवोर्षिगलि सभांन" जमक श्रमण-में श्री देवद्धिं गणी क्षमा श्रमण चाहिये । भला सभांत भी कभी किसी पुरुष का नाम हुआ है या हो सकता है ? ___ आप इस पत्र से समझ ही लेंगे कि चूंकि हमारा सम्बन्ध देवल जैनधर्म से है, अतः हमें इस सम्बन्धमें जो कुछ अनुचित प्रतीत हुआ हमने लिख दिया है। ____ अन्य लेखकों की तरह आपने कट्टर सनातनधर्मी होते हुये भी अन्य धर्म प्रवर्तकों के लिये शुष्क और तिरस्कार मुक्त शब्दों का प्रयोग नहीं किया। इसके लिये हम आपको साधु बाद कहते हैं और श्राभार भी मानते हैं । हमें अाशा है कि आपभी हमारे इस पत्र को उसी प्रकार सच्चे हृदय ले स्वीकार करेंगे, जिस प्रकार हमने लिखा है। ___ ऊपर लिखी पुस्तकों के अतिरिक्त कुछ हैंडविल और पुस्तक हम और भेज रहे हैं जिन के अनुशीलन से आपको बड़ा लाभ होगा। किसी निश्चय पर पहुँचने से पहले यदि आपको और किसी पुस्तक की आवश्यकता प्रतीत हो तो आप निःसंकोच हमें लिखें। हुम सब प्रकार की सामग्री आप तक पहुंचाने का प्रयत्न करेंगे। इन पुस्तकों में भी यदि आपको कोई बात भ्रमपूर्ण प्रतीत हो या जिसमें आपको सन्देह हो उसके विषय में आप सहर्ष हमें सूचना दें। भवदीय शभचिंतक प्रधान
SR No.032644
Book TitleBharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagmalla Jain
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year1928
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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