SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ होगये। ये दोनों आचार्य अपने अपने गच्छके साथ पृथ्वीपर विचरने लगे। . : ... ... :: एक दिन वे दोनों ही भाचार्य विहार करते हुए पाटलिपुत्र नगरमें पधारे। यहां उन्हें, राजा सम्प्रतिसे भेट हुई। राजा आर्य सुहस्ती सूरि महाराजको बन्दना करने के लिये महलसे उतरे और जमीनपर मस्तक टेक कर बन्दनाकी पीछे धर्मके विषयमें आचार्य महायजसे कुछ प्रश्न किये। उन प्रश्नोंका उत्तर दे देनेके बाद भाचार्य महाराजने राजाके पूर्व जन्म की कथा कह सुनायी। आचार्य महाराजसे अपने पूर्वभवका वृतान्त सुनकर राजा हाथ जोड़कर बोले- "भगवन् ! आज दिन मैं जिन विभूतियोंका उपभोग कर रहा हूं, वह सब आपकी ही कृपाका फल हैं। अतएव आप मुझे धर्मपुत्र-शिक्षासे अनुगृहीत करें।" भगवन् आर्य सुहस्तीसूरिने उन्हें धर्ममें दृढ़ रहनेका आदेश दिया। उस दिनसे राजा सम्पति परम श्रावक बन गए। और अपने नगरको देवालयों चैत्यालयों, भोजनालयों, औषधालयों, विद्यालयों, तथा दान. शालाओंसे विभूषित कर दिया। इसी समय आर्य महागिरि और आर्य सुहस्तीसूरिमें परस्पर विवाद हो जाने के कारण एक ही समाचारी वालोंके पृथक-पृथक दो मार्ग हो गये। यहाबीर स्वामीने पहले हो कह दिया था, अस्तु । “मदीये शिष्य सन्ताने स्थूलभद्र मुनेःपरं । पत्प्रकर्षा साध नां समाचारी भविष्यति ।"
SR No.032643
Book TitlePatliputra Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy