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________________ * चन्द्रगुप्त चरित्र . राजा नन्दके बाद पाटलिपुत्रके राज्याप्सनपर महा प्रतापी चन्द्रगुप्त राजा हुए। एक समय राजा नन्दकी सभामें चाणक्य नामका एक ब्राह्मण धन पानेकी इच्छासे आया और राजाके. सिंहासनपर बैठ गया। उस आसनपर राजा नन्दके सिवा और कोई न बैठता था। राजाके भद्रासनपर चाणक्यको बैठा देख, ( परिचायक ) नौकरने पृथक् एक आसन बिछा दिया. और विनय पूर्वक कहा, कि आप उस आसनसे उठकर इसपर बैठ जाइये, किन्तु चाणक्यने राज्यासनकोन छोड़ा बल्कि उस दूसरे आसनपर अपना कम-एडलु रख उसे भी रोक दिया। इस प्रकार नौकरोंने कई आसन बिछाये, पर उसने उनपर भी दण्ड तथा माला आदि बष्तुएँ रख दी और उन सबको भी सेक दिया। इसपर नौकसेंने मारे क्रोधके कुछ ऊंच-नीच शब्द कहते हुए चाणक्यको अपमान के साथ उतार दिया। इस अपमानमे चाणक्य मारे क्रोधके आग हो गया और उसकी आंखे लाल हो गयीं। उसने अपनी शिखाको खोल भरी सभामें प्रतिक्षा की, कि जब तक इस अन्यायी और अभिमानी राजा नन्दको राजगिद्दीसे न उतार लँगा, तबतक इस शिखाको न बांधूगा। ऐसी भीषण प्रतिज्ञा करके वह चला गया भोर
SR No.032643
Book TitlePatliputra Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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