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________________ ( ३० ) शीघ्र उपाय न किया गया, तो मेरे सहित समस्त कुटुम्बका नाश हो जायेगा । इस संकटसे बचनेका एक मात्र उपाय यही है, कि मैं जब राज सभा में जाकर राजाको प्रणाम करू, तब तुम तल-वारसे मेरा सिर काट डालना और यों कहना, कि राजा या स्वामीका अभक्त पिता भी मार डालने योग्य है । ऐसा करने से मेरे सिवा सारा कुटुम्ब बच सकता है । पहले तो श्रीक ऐसा निर्दय कार्य करनेसे बहुत हिचकिचाया और उसने आँखों में आँसू भरकर अपने पिता से कहा, कि आप ऐसा नीचाति नीच अत्यन्त गर्हित कर्म करनेकी मुझे आज्ञा न दीजिये, परन्तु अन्त में मन्त्री के बहुत कुछ समझाने-बुझाने पर उसने वैसाही करना स्वीकार कर लिया । और भरी सभा में अपने पिताका सिर. काट डाला । यह हालत देखकर सभा के सब लोग काँप उठे इसी समय राजाने बड़े मीठे बचनोंसे श्रीयकसे कहा, हे वत्स ! तूने यह क्या दुष्कर्म किया ?" इसपर श्रीक बोला, – “स्वामिन्! जब आपके मनमें यह आया, कि अमुक आदमी हमारा अपराधी हैं, तो आपके भक्तोंकों उचित है, कि उसे उसी समय शिक्षा दें ।” यह सुन, राजा नन्द श्रीयककी प्रशंसा करता हुआ बोला,“श्रीयक' ! सर्वाधिकार सहित इस प्रधान मुद्रा योग्य तू ही है । अतएव इस मुद्राको ग्रहण कर ।" श्री विनय पूर्वक राजासे कहा, मेरे बड़े भाई स्थूलभद्रजी विद्यमान हैं। "स्वामिन पिताके समान उनके रहते मैंकैसे इस j
SR No.032643
Book TitlePatliputra Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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