SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २८ ) पाटलिपुत्र नगा में उसी समय एक वर रुचि नामक ब्राह्मण रहता था। वह व्याकरर्णादि सब शास्त्रोंमें बड़ा कुशल और कविता बनाने मेंबड़ा दक्ष था। प्रति दिन राज-सभा में जाता और अपनी बनायी हुई कविताओंको सुनाकर राजाका मनोरञ्जन किया करता था किन्तु राजाकी ओरसे पारितोषिकमें कुछ भी नहीं मिलता था। राजाकी इच्छा थी कि मन्त्री जब इनकी प्रशंसा करें, तब पारितोषिक द; पर मन्त्री कभी ऐसा नहीं करते थे। यह बात कविको मालूम हो गयी। उसने मन्त्रीके घर जाकर उनकी पत्नोकी सेवा--शुश्रुषाकी और राजसभामें अपनी कविताओंको प्रशंसा मन्त्रीके द्वारा करानेकी उनसे कोशिशकी आखिर स्त्रीके कहनेसे मन्त्रीने एकदिन राजसभामें वर रुचिकी कविताकी प्रशंसा की। उस दिनसे नित्यप्रति वर रुचिको एक सौ आठ स्वर्णमुद्राएं (मुहरें) दी जाने लगीं। कुछ दिन बाद इतना अधिक (व्यय)खर्च मन्त्री शकडालको पसन्द नहीं आया और उसने अनेक उपाय करके राज दर बारसे मुहरोंका दिया जाना बन्द करा दिया जिस दिन से वर रुचीका यह अपमान हुआ, उस दिनसे वर रुचिने मन्त्री शकडालका (छिद्रान्वेषण ) करना शुरू किया। दैव योगसे उसी अमय मन्त्रीके छोटे पुत्र श्रीय- कका बिबाह होने वाला था। इस अवसरपर मन्त्री राजानन्दको अपने घरचुलाकर उनका सम्मान करना चाहते थे। इसी उद्देश्यसे उन्होंने छत्र, चमर तथा अनेक उत्तमोत्तम शस्त्र तैयार करा रहे थे।
SR No.032643
Book TitlePatliputra Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy