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________________ * भोपावर का ऐतिहासिक महत्व * भोपावर न केवल प्राचीनकाल में बल्कि मध्यकाल एवं आधुनिक काल में भी भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर रहा है। इस नगर का अभ्युद्य ही प्राचीन भारत की महान घटनाओं में से एक है। कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का विवाह रुक्मी को पौत्री रोचना के साथ तय हुआ । अनिरुद्ध के विवाहोत्सव में सम्मिलित होने के लिए श्री कृष्ण, बलरामजी, रुक्मणीजी, प्रद्युम्न आदिद्वारकावासी भोजकुट (भोपावर) में पधारे थे। भोपावर (भोजकुट) का प्राचीन काल से ही अमझेरा से गहरा सम्बन्ध रहा है। जिसकी परछाई भारतीय इतिहास के मध्यकाल एवं आधुनिक काल में भी देखी . जा सकती हैं। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मालवांचल की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वतंत्रता के महायज्ञ में अनेक रणबांकुरों में अपने प्राणों की आहुति देकर इस मालवमाटी का गौरव बढ़ाया है। आजादी के महासमर में ऐसे ही एक बलिदानी राणा बख्तावरसिंह थे, जिन पर न केवल इस मालवमाटी को अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष को अभिमान है। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय महाराणा बख्तावरसिंह अमझेरा के राजा थे। उनके पिता का नाम राव राजा अजीतसिंह व माता का नाम इन्द्रकुँवर था । वे बाल्यकाल से ही महान योद्धा, दृढ़ निश्चयी होने के साथ आजादी के दीवाने थे। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अमझेरा मालवा की सबसे पहली रियासत थी जिसका उद्देश्य मालवा से कंपनी राज्य समाप्त करना था । इसी संदर्भ में महाराजा बख्तावरसिंह अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए। भोपावर एजेंसी स्थित अमझेरा के वकील 2 जुलाई 1857 को सायं 4 बजे अमझेरा आ गए। वकील ने अमझेरा आने का कारण बताया था कि उसके परिवार में कोई व्यक्ति सख्त बीमारथा । उन्होने भोपावर के केप्टन एचिसन से आदेश प्राप्त नहीं किया था । वे बिना -2D
SR No.032639
Book TitleBhopavar Tirth ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashwant Chauhan
PublisherShantinath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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