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________________ आत्माका शोषण हो रहा था' सब ही हृदयों मे प्रचिलत विश्वास मन्यताओं और प्रवृत्तियों के विरूद्ध एक विद्रोह की लहर जाग रही थी विचारों में उथल.पुथल मची थी, स्थितिपालकों और सूधारकों में संघर्ष चल रहा था। इस संघर्ष के फलस्वरूप तब सभी धारागों के विद्वान अपने अपने सिद्धान्तों की संभाल, शोध और उनके इक्ट्टा करने में लगे थे। एक तरफ वैदिक परम्पराकी रक्षा के लिये यास्काचार्य, शौनक और आश्वलायन जैसे विद्वान पैदा हो रहे थे। दूसरी तरफ वैदिक संस्कृतिको मिटाने और भौतिक संस्कृतिको फैलाने लिये जड़वाद के प्रसिद्ध आचार्य अजितकेशकम्बली और वृहस्पति मैदान में आरहे थे। तीसरी भौतिकवाद की निस्सारता दिखाने के लिए अक्षपाद गौतम जैसे न्यायदर्शनको जन्म दे रहे थे। इनके साथ ही साथ मस्करी गोशाल' संजय, प्रकद्ध, कात्यायन और पूर्णकश्यप जैसे कितनेही आध्यात्मिक तत्ववेत्ता अपने अपने ढंग से जीवन और जगत की गुत्थियों को सुलझाने में लगे थे। जैनधर्म का उद्धार और तत्कालीन स्थिती का सुधार __ ऐसे बातावरण में लोगों के दिलों में समता, मन में उदारता, बर्ताव में सहिष्णुता और जीवन में समय मदाचार भरने के लिये भगवान महाबीरने अपने आदर्श जीवन और उपदेश.द्वारा जिस श्रमण संस्कृतिका पुनरुद्धार किया था वह उनके पीछे जैनधर्म के नाम से प्रसिद्ध हुई। भगवान महबीर इस धम के कोई मूल-प्रवर्सकन थे, वह उसके उद्धारक ही थे, क्योकि यह र्धम उनसे बहुत पहले,वैदिक आर्यगण के आने से भी पहिले यहाँ के मूलवासी द्रविडं और नाग लोगों में अर्हत, यति,व्रात्य जिन, निर्ग्रन्थ अथवा श्रमण संस्कृतिके नाम से बराबर जारी था और पीछे से विदेह और मगध देशों में आकर बसने वाले सूर्यवंशी आर्यगरण से अपनाया जाकर आर्यधर्म में बदल गया था। यह धर्म भारत भूमिकी ऐसी ही मौलिक उपज है, जैसे कि यहां के शैव और शात्क नाम के प्राचीन धर्म इस ऐतिहाकि सच्चाई को मानने के लिए गो शुरू शुरू में ऐतिहासज्ञों को बड़ी कटिनता उठानी पड़ी किन्तु आज प्राचीन साहित्य और पुरातस्वकी नई खोजों से यह बात दिन पर दिन अधिक प्रमाणित होती जा
SR No.032638
Book TitleItihas Me Bhagwan Mahavir ka Sthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJay Bhagwan
PublisherA V Jain Mission
Publication Year1957
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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