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________________ पास के सभी इलाकों की बोलियां शामिल थीं। मगवान की इस उदार परिणति से भारत की सभी बोंलियों को अपने उत्कर्ष में बड़ी सहायता मिली है। इसी कारण जैन धर्म भारत के जिन जिन देशोंमें फैला अथवा जिन २ कालों में से गुजरा, यह सदा उन्हीं की बोलियों में ज्ञान देता और साहित्यसृजन करता चला गया । इसलिये जैन साहित्य की यह विशेषता है कि यह संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, मागधी शौरसेनी, महाराष्ट्री, मुजराती, राजस्थानी, हिन्दी, तामिल तैलगु. कनड़ी आदि भारत के उत्तर और दक्षिण की, पूर्व और पश्चिम की सभी पुरानी और नई भाषाओं में लिखा हुप्रा मिलता हैं' । वही एक साहित्य ऐसा है, जिस से कि हम भारतीय भाषाओं के क्रमिक विकास का भली भाँति अध्यन कर सकते उपसंहार और कृतज्ञता इस तरह भगवान महावीर ने अपने प्रादर्शजीवन और उपदेश से जिस जैन संस्कृति का पुनरुद्धार किया था उसने भारतीय, सभ्यता साहित्य, कला और भाषाओं के विकास और उत्थानमें बहुत बड़ा भाग लिया है इन भगवान महावीर का, जिसने भारत के विचार को उदारता दी। गवार को पवित्रता दी जिसने इन्सान के गौरवको बढ़ाया, उसके आदर्श को परमात्मारकी बुलन्दी तक पहुंचाया, जिसने इन्सान और इन्सान के भेदों को मिटाया, सभी को धर्म और स्वतन्त्रता का अधिकारी बनाया. जिसने भारत के अध्यात्म-सन्देश को अन्य देशों तक पहुँचाया और उनके नांस्कृतिक सोतों को सुधारा, भारत जितनाभी गर्वकरे उतना ही थोड़ा है। 1 Wiuternitz-History of Indian Lit. vol 11-pp 594, 595
SR No.032638
Book TitleItihas Me Bhagwan Mahavir ka Sthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJay Bhagwan
PublisherA V Jain Mission
Publication Year1957
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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