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________________ ( १६ ) द्वारा अपनाये जाकर और देश की पुरानी यहूदी संस्कृति की अनेक मान्यताओं और प्रथाओं से मिलकर ईसाई धर्म के रूपमें प्रकट हुए । वास्तव में ईसाई धर्म श्रमणसंस्कृतिका ही यहूदी संस्करण है भारत और जैन संस्कृति जहां तक भारत का सवाल है, उसके जीवन पर तो जैन संस्कृति ने बहुत ही गहरा प्रमाव डाला है, जैसा कि लोकमान्य तिलक का मत है-'इसके अहिंसा तत्वने तो भारतीय रहन सहन पर एक अमिट छाप लगाई है। पूर्व-काल में यज्ञों के लिये जो असंख्य पशुओं की बली होती थो वह जैन अहिंसा के प्रचार से ही बन्द हुई हैं ।' इस धर्म ने यहां के खान पान में भी बहुत वड़ा सुधार किया है । भारतको जो जो जातियां इस के प्रभाव में आईं सभी मांसाहारको छोड़कर शाक-भोजी होती चली गई इस धर्म ने भारत के फौजदारी कानूनके दण्डविधान को भी काफी नरम बनाया है । इस से सजाओं अमानुषिक सख्ती और बेरहमी में बहुत कमी हुई है। इस धर्मके कारण दण्डविधानकी जगह प्रायश्चिविधान को विशेष स्थान मिला है । यह अहिंसा धर्म लोगों के जीवन में उतरते उतरते इतना घर कर गया कि उसके विरुद्ध चलनेसे सभीको लोकनिन्दा का भय होने लगा । इसी कारणसे महावीर के उत्तरकाल में हिंदु स्मृतिकारों और पुराणकारों ने जितना आचार-सम्बन्धी साहित्य लिखा है, उस सब में उन्होंने नरमेध, अश्वमेध, पशुबलि और मांसाहार को लोकविरुद्ध होने से त्याज्य ठहराया है । जैनधर्म के आध्यात्मिक विचारों का भी भारतीय संस्कृति पर १ लोकमान्यतिलक-१६०४ में जैन कान्फ्रेंस में दिया हुआ व्याख्यान २ अोझाजी-मध्यकालीन भारतीय संस्कृति-पृ० ३४ ३ याश्वल्क्य स्मृति १-१५६, वृहन्नारदीय पुराण, २२ १२ १६; अोझा जी-मध्यकालीन भा० संस्कृति पृ० ३४
SR No.032638
Book TitleItihas Me Bhagwan Mahavir ka Sthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJay Bhagwan
PublisherA V Jain Mission
Publication Year1957
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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