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________________ ( १३ ) है कि ४३७ ई. पूर्व में सिंहलदीप के राजा ने अपनी राजधानी अनरूदपुरमें जैन मन्दिर और जैनमट बनवाये थे, जो ४०० साल तक कायम रहे । इतना ही नहीं भगवान महावीर के समय से लेकर ईसा की पहली सदी तक मध्य एशिया' और लघु एशिया के अफगा. निस्तान, ईरान, ईराक, फ़िलिस्तीन, सीरिया आदि देशों के साथ पथवा मध्यसागर से निकटवर्ति यूनान, मिश्र, इथोपिया (Ethopia) और एबी. सीनिया अदि देशों के साथ जैन श्रमणों का सम्पर्क बराबर बना रहा हैं । यूनानी लेखकों के कथन से नहाँ यह सिद्ध है कि पायेथेगोरस (Pytha goras) पैर्ररहो (Pyrrho) डाइजिनेस (Diogenes) जैसे यूनानी तत्तवेताओं ने भारत में आकर जैन श्रमणों से शिक्षादीक्ष ग्रहण की थी यहाँ यह भी सिद्ध है कि यूनानीबादशाह सिकन्दर महान के साथ भारत से tजाने वाले जैन ऋषि कल्याण के समान सैकडों जैनभमण समय समय पर उक्त देशों में जाकर अपने धर्म का प्रचार करते रहे हैं और उन देशों में अपने मठ बनाकर रहते रहे हैं। जैन साहित से भी विदित है कि मौर्य सम्राट अशोक के पोते सम्राट, सम्प्रति ने ईसा पूर्व कौतीसरी सदी में बहुत से जैन श्रमणों को जैनधर्म प्रचारार्थ अनार्य देशों में भिजवाया था। जैनधर्म और ईसाईधर्म कितने ही विद्वानों का मत है कि प्रभु ईसाने इन्हीं श्रमणोंसे जो बहुत बड़ी संख्या में फिलिस्तीनके अन्दर अपने मठ बनाकर रहते थे, अध्यात्मविद्याके रहस्यको पाया था और इन्हींके आर्दश पर चलकर उसने अपने जीवन की शुद्धिअर्थ आत्म-विश्वप्रेम, जीव-दया,मार्दव, क्षमा, संयम, अपरिग्रह प्रायश्चित्त, समता आदि धर्मों की साधना की थी। इससे भी आगे बढ़कर अनेक प्रामाणिक युक्तियोंके आधार पर अब विद्वानोंको यह निश्चय १-श्री हेमचन्द्राचार्य कृत परिशिष्ट पर्व श्लोक ६६-१०२ २-पं० सुन्दरलाल-हजरत ईसा और ईसाई धर्म पृ० २२ ३-५० सुन्दरलाल हजरत ईसा और धर्म । १६२
SR No.032638
Book TitleItihas Me Bhagwan Mahavir ka Sthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJay Bhagwan
PublisherA V Jain Mission
Publication Year1957
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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