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________________ विरोधों का संगम है, वह सत्यासत्य नित्य नित्यानित्य. एकानेक सामान विशेष जीवाजीव ऋतअनृत प्रादि विभिन्न द्वन्दों को रंग भूमि है वह भीतर और बाहर सब ओर फैला हया है, वह अनादि और अन्नत है, वह हमारी सारी बौद्धिक मान्यतामों और विधिनिषेधरूप सारे शब्दवाक्यों से बहुत ऊपर है। वह अनेकान्तमय है, इस लिये उसके अध्ययन में हमें बहुत ही उदार होना चाहिये और तत्सम्बन्धी सभी विचारों को समझने, अपनाने और समन्वय करने की कोशिश करनी चाहिये । भगवानके प्रति लोगोंकी श्रद्धा ___ इस तरह महावीरका जीवन इतना तपस्वी, त्यागपूर्ण, दयामय, सरल और पवित्र था, उनके विचार इतने उदार, व्यापक और समन्वयकार थे, उनके सिद्धान्त ऐसे अाशा पूर्ण उत्साह वर्धक और शान्तिदायक थे कि वह अपने जीवनकाल में ही अहम्त, सर्वज्ञ, तीर्थकर आदि नामों से प्रसिद्ध हो चले थे। केवलज्ञानप्राप्तिके पीछे वह भारत के पूर्व पच्छिम' उत्तर, मध्य और दक्षिण के देशों में जहाँ कहीं भी गये सभी राजा और रंक, पतित श्रोर प्रतिष्ठन, ब्राह्मण और क्षत्रिय' वैश्य और शूद्र, पुरूषों और स्त्रियों ने उनका खूब स्वागत किया सभी ने उनके उपदेशों को अपनाया और सभी उनके मार्ग के अनुयायी बने। इनमें वैशाली के राजा चेटक, अङ्गदेश के राजा कुरिणक, कलिङ्ग के राजा जितशत्रु वत्स के राजा शतानीक, सिन्धु-सौवीर के राजा उदयन, मगध के सम्राट श्रणिक बिम्बसार, दक्षिण हेमागदक राजा जीव धर विशेष उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त सम्राट श्रेणिक के अभयकृमार, वारिषेण आदि १३ राज कुमार और नन्दा,नन्दप्रती आदि १३ रानियाँ तथा उपरोक्त राजाओं मेंसे उदयन और जीवंधर तो उनके समान ही जिनदीक्षा ले जैन श्रमण बन गये। इनके अलावा वैदिक बाडू मयके पारंगत विद्वान इन्द्रभूति, अग्निमूति, वायुभूति और स्कन्दक जैसे अपनी सैकड़ों की शिष्य १ (अ) बा० कामताप्रसाद-भगवान महावीर और महाबीर मदात्मा बुद्ध पृ० ६५-६६ (मा) प० कल्याण विजय - श्रसरण भगवान महावीर तीसरा परिछेन्द
SR No.032638
Book TitleItihas Me Bhagwan Mahavir ka Sthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJay Bhagwan
PublisherA V Jain Mission
Publication Year1957
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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