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________________ ( ४७ ) था और न राजा दुर्लभ संसार में आया था । शायद यह बात स्वप्न की हो और वह स्वप्न की बात लिपि बद्ध कर दी हो या किसी पूर्व भव में शास्त्रार्थ हुआ हो । खरतरों के अज्ञान के पर्दे कुछ दूर हुए तब जाकर उनको भान हुआ कि हमारे पूर्वजों की भूल जरूर हुई है; अतः इस भूल को सुधारने के लिए आधुनिक खरतरों ने इसका एक रास्ता ढूँढ़ निकाला है कि सं० १०२४ में १००० तो ठीक है पर ऊपर के २४ का भाव यह है कि बीस क चार गुना करने से ८० होता है । श्रतः शास्त्रार्थ का समय १०८० का था । पर इस रास्ते में भी खरतरों के पूर्वजों ने ऐसे रोड़े डाले हैं कि बिचारे आधुनिक खरतर एक कदम भी आगे नहीं रख सकते हैं देखिये वह कांटे हैं या रोड़े :श्रीपत्तने दुर्लभराज राज्ये विजित्य वादे मट्ठवासि सूरीन aisa पक्ष भ्रंशशि प्रमाणे लेभेऽपियैः खरतरोविरुद || “वा० पूर्ण० सं० खरतर पटावली पृष्ट ३” ४ २ ४ = ० ६ इस खरतर पट्टावलीकार ने संकेत शब्द में स्पष्ट १०२४ का समय लिखा है जिसको आधुनिक खरतर किसी भी उपाय से १०८० कर ही नहीं सकते हैं। क्योंकि 'दससय चउबीस' के लिये तो विकल्प कर दिया कि २० को चार गुना करने से ८० होता है पर 'वर्षेऽब्धि पक्ष शशि ( १०२४ ) इसके लिये क्या करेंगे ? अर्थात् खरतरों के पूर्वजों के मतानुसार जिनेश्वरसूरि के शास्त्रार्थ एवं खरतर विरुद का समय वि. सं. १०२४ का मानना ही पड़ेगा और १ २४ में न हुआ था दुर्लभ राजा का जन्म और न हुआ था जिनेश्वरसूरि का अवतार, तो शास्त्रार्थ और खरतर विरुद का तो पता ही कहाँ था ?
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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