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________________ जैनधर्म को जीवित रक्खा है। और तुम्हारी भी सहायता करते हैं । तथा उपकेशगच्छीय आचार्य यक्षदेवसूरि ने आर्य वनसेन के ४ शिज्यों को ज्ञानदान और शिष्यदान दे कर उनके चन्द्र, नागेन्द्र विद्याधर और निवृत्ति कुल स्थापन किये जिसमें चन्द्रकुल में मैं भी हूँ तो उनका उपकार कैसे भूला जाय । तथा उपकेशगच्छीय देवगुप्तसूरि ने देवढिगणि क्षमाश्रमण को दो पूर्व का ज्ञान पढ़ा कर क्षमाश्रमण पद दिया था कि जिन्होंने आगमों को पुस्तकारूढ़ कर जैन समाज पर महान उपकार किया है, इतना ही क्यों पर मैं खुद उपकेशगच्छाचार्यों के पास पढ़ा हूँ । अतः उन महा उपकारी पुरुषों के उपकार के बदले मेरे नाम से इस प्रकार मिथ्या आक्षेप करना यह संसार वृद्धि का ही कारण है इत्यादि । इसका आधु निक खरतर क्या उत्तर दे सकते हैं ? शर्म ! शर्म !! महाशर्म !!! कि खरतरों ने अपना कलंक छिपाने के लिए एक महान उपकारी पुरुषों के ऊपर मिथ्या दोषा. रोपण कर दिया है, परन्तु आज बीसवीं शताब्दी और ऐतिहासिक युग में ऐसे कल्पित चित्र और मिथ्या लेखों की फूटी कौड़ी जितनी भी कीमत नहीं है। ____ खरतरों ! अब भी समय है कि ऐसे चित्र और मिथ्या लेखों को शीघ्र हटा दो वरन् तुम्हारे हक में ठीक न होगा इस को अच्छी तरह सोच लेना चाहिए। केसरीचन्द-चोरडिया
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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