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________________ ( ८ ) क्यों, कब और किस व्यक्ति द्वारा हुई ? यदि शास्त्रार्थ की विजय में खरतर शब्द की उत्पत्ति हुई होती तो इस महत्वपूर्ण विरुदकी इस प्रकार विडम्बना नहीं होती जो आज खरतर लोग कर रहे हैं । जिन आचार्यो के लिए आज खरतरे खरतर होने को कह रहे हैं पर न तो वे थे खरतर और न उन्होंने खरतर शब्द कानों से भी सुना था। इतना ही क्यों पर विद्वानों का तो यहां तक खयाल है कि पूर्वाचाय्यों पर खरत्व का कलंक लगाने वाले ही सच्चे खरतर हैं | अस्तु । खरतर मत की उत्पत्ति के लिए खरतरों की भिन्न भिन्न मान्यता का परिचय करवाने के बाद अब मैं नर-तरमतोत्पत्ति के विषय में यह बतला देना चाहता हूँ कि खरतर मत की उत्पत्ति किसी राजा के दिये हुए विरुद से हुई है या किसी आचार्य की खर [कठोर] प्रकृति के कारण हुई है ? इस विषय के निर्णय के लिए मैंने 'खरतरमत्तोत्पत्ति' नामक भाग पहिला में पुष्कल प्रमाणों द्वारा यह साबित कर दिया है कि खरतरशब्द को उत्पत्ति जिनदत्तसूरि की खर प्रकृति की वजह से हुई है । यही कारण है कि उस समय जिनदत्तसूरि खरतर शब्द से सख्त नाराज रहते थे । कारण, यह खरतर शब्द उनके लिये अपमान सूचक था । प्रथम भाग लिखने के बाद भी मैं इस विषय का अन्वेषण करता ही रहा अतः मुझे और भी कई प्रमाण प्राप्त हुये हैं, जिनको मैं आज आप सज्जनों की सेवामें उपस्थित कर देना समुचित समझता हूँ ।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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