SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२१) नहीं है कि वह जनता के सामने पेश कर सके । आधुनिक खरतर अनुयायी प्रतिक्रमण के अन्त में दादाजी के काउस्सग्ग करते हैं। उसमें भी जिनेश्वरसूरि का नहीं पर जिनदत्तसूरि का ही करते हैं और कहते हैं कि खरतरगच्छ शृंगारहार xxx जिनदत्तसूरि आराधनार्थxxxइससे भी स्पष्ट होजाता है कि खरतर गच्छ, के आदि पुरुष जिनदत्तसूरि ही हैं। खरतर शब्द को प्राचीन साबित करने वाला एक प्रमाण खरतरों को ऐसा उपलब्ध हुआ है कि जिस पर वे लोग विश्वास कर कहते हैं कि बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर के संग्रह किये हुए शिलालेख खण्ड तीसरे में वि० सं० ११४७ का एक शिलालेख है। "संवत् ११४७ वर्षे श्रीऋषभ विवं श्रीखरतर गच्छे श्री जिनशेखर सूरिभिः करापितं ॥" बा० पू० सं० ख० तीसरा लेखांक २१२४ पूर्वोक्त शिलालेख जैसलमेर के किल्ले के अन्दर स्थित चिन्तामणि पार्श्वनाथ के मन्दिर में है। जो विनपबासन भूमि पर बीस विहरमान तीर्थङ्करों की मूर्तियाँ स्थापित है, उनमें एक मूर्ति में यह लेख बताया जाता है। परन्तु जब फलोदो के वैद्य मुहता पांचूलालजी के सौंध में मुझे जैसलमेर जाने का सौभाग्य मिला तो, मैं अपने दिल की शङ्का निवारणार्थ प्राचीन लेख संग्रह खण्ड तीसरा जिसमें निर्दिष्ट लेख मुद्रित था साथ में लेकर मन्दिर में गया और खोज करनी शुरू की। परन्तु अत्यधिक अन्वेषण करने पर भी ११४७ के संवत् वाली उक्त मूर्ति उपलब्ध नहीं हुई। अनन्तर शिलालेख के नम्बरों से मिलान किया, पर न तो वह मूर्ति ही
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy