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________________ ( ९ ) की राजसभा में चैत्यवासियों से शास्त्रार्थ कर खरतर विरुद प्राप्त किया था । - जिनेश्वरसूरि के शिष्य धनेश्वरसूरि हुये उन्होंने सुरसुन्दरी कथा आदि कई प्रन्थों का निर्माण किया पर किसी स्थान पर यह नहीं लिखा कि जिनेश्वरसूरि को खरतर विरुद मिला था । - जिनेश्वरसूरि के पट्टधर जिनचन्द्रसूरि ने संवेग रंगशालादि कई प्रन्थ बनाये उसमें भी खरतर शब्द की बू तक भी नहीं है । - जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर अभयदेवसूरि हुये उन्होंने हरिभद्रसूरि के पंचासक पर टीका रची। जिनेश्वरसूरि रचित षट्स्थान प्रकरण पर भाष्य और कुलकादि कई ग्रन्थों की रचना की पर किसी स्थान पर यह नहीं लिखा कि जिनेश्वरसूरि ने वि० सं० १०८० में पाटण के दुर्लभराजा की राजसभा में चैत्यवासियों के साथ शास्त्रार्थ कर खरतर विरुद प्राप्त किया था । इतना ही क्यों पर उन्होंने तो अपनी रचित टीकाओं में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि जिनेश्वरसूरि चान्द्रकुल में थे । देखिये अभयदेवसूरि कृत श्रीस्थान यांगसूत्र की टीका । "तच्चंद्र कुलीन प्रवचन प्रणति, प्रतिबद्धविहार हरिचरित श्री वर्धमानाऽभिधान मुनिपतिपादोपसेविनः, प्रमाणादिव्युत्पादन प्रवणप्रकरणप्रबन्धप्रणार्थिनः प्रबुद्ध प्रतिबंध प्रवक्तप्रवीणाऽप्रतिहतप्रवचनार्थप्रधानवाक्प्रसारस्य, सुविहितमुनिजन मुख्यस्य श्री जिनेश्वराचार्यस्य तदनुज स्यचव्याकरणादिशास्त्रकर्त्तः श्रबुद्धिसागराचार्यस्य, चरणकमलचंचरीक कल्पेन श्रीमदभयदेव सूरिनाम्ना मया महावीर जिनराज संतान वर्त्तिना"
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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