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________________ मंत्री कर्मचन्द वच्छावत मंत्री कर्मचन्द जैन समाज में प्रख्यात मुशदियों में एक है। आपके जीवन के विषय कई खरतर यतियों ने रास वगैरह भी लिखे हैं क्योंकि ख० यतियों की इन पर पूर्ण कृपा थी । यही कारण है कि ख० यतियों के षड़यंत्र में इनका सहयोग रहता था। अतः कई ऐतिहासिक पुस्तकों में खर० यतियों के साथ साथ मन्त्री कर्मचन्द पर भी ऐसे २ लांछन लगाये गये हैं कि जिसको पढ़कर जैन समाज को दुःख हुये बिना नहीं रहता है पर बिचारा जैन समाज इसके लिये कर भी तो क्या सके, क्योंकि यह तो केवल घर शूरा अर्थात् घर के घर ही लड़ना झगड़ना जानता है जिस पुस्तक को छपे आज ३३ वर्ष हो गुजरा है किसी ने चूं सक भी नहीं किया । यदि जैन समाज इन बातों को नहीं जानता हो तो मैं आज एक दो उदाहरण आपके सामने रख देता हूँ। . "वि. सं. १६५२ में इनके मंत्री मेहता कर्मचन्द आदि कुछ लोगों ने इनको मारने की और इनके स्थान में इनके पुत्र दलपतसिंहजी को गद्दी पर बिठाने की साजिश की। परन्तु यह भेद खुल गया। इस पर कर्मचन्द भाग कर अकबर की शरण में चला गया और उसे रायसिंहजी की तरफ से भड़काने लगा। अकबर ने भी उसके कहने में आकर बीकानेर राज्य के भरथनेर आदि कई परगने राजकुमार दलपतसिंहजी को जागीर में दे दिये । इसी दिन से बाप बेटों में अनबन शुरू हुई। दलपतसिंहजी ने राज्य के कई परगनों पर कब्जा कर लिया। जिस समय वि. सं..
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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