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________________ ( २२ ) पाध्याय के पास दीक्षा ली थी आपकी प्रकृति उग्र एवं खरतर थी।आप पदवी के बड़े ही पिपासु थे पर पदवी के योग्य एक भी गुण आपने सम्पादित नहीं किया था । यही कारण है कि करीबन २८ वर्षों से कोशिश करने पर भी आपको किसी ने एक छोटी सी पदवी भी नहीं दी। इससे पाठक समझ सकते हैं कि साधु सोमचन्द्र के अन्दर कितनी योग्यता थी ? फिर भी सोमचन्द्र हताश न होकर पदवी के लिये कोशिश करता ही रहा । ठीक उस समय देवभद्र की भेंट सोमचन्द्र से हुई । आपस में वार्तालाप अर्थात वचनबन्धी हो गई । शायद यह वचनबन्धी जिनवल्लभ की षट् कल्याणकादि उत्सूत्र प्ररूपना को मान कर उसकी ही प्ररूपना करने की होगी। खैर, सोमचन्द्र ने देवभद्राचार्यके कहने को मंजूर कर लिया क्योंकि गरजवान् क्या नहीं करता है। जिनवल्लभ का देहान्त होने के बाद २ वर्ष से अर्थात् वल्लभ का देहान्त वि० सं० ११६७ में हुआ तब वि० सं० ११६९ में देवभद्र ने सोमचंद्र को चित्तौड़ ले जाकर वल्लभ का पट्टधर बना दिया और उस सोमचन्द्र का नाम जिनदत्तसूरि रख दिया । इससे पाया जाता है कि इन उत्सूत्र वादियों के उस समय सिवाय चितौड़ के कोई स्थान ही नहीं होगा। देवभद्र भी एक पक्षपात का बादशाह था कारण, यदि उसको वल्लभ का पटधर ही बनाना था तो वल्लभ के पास शेखर नाम का साधु रहता था और वह वल्लभ का संभोगी भी था तब उस संभोगी साधु को छोड़ विसंभोगी सोमचंद्र को वल्लभ का पट्टधर बनाया यह तो उसने जान बूझ कर उन दोनों को आपस
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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