SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५२ ) सेरुण ८ जालो, ९ लाखण १० पाल्हण ११ आसपाल १२ भोमाल १३ वीरदेव १४ जैदेव १५ पाददेव १६ बोहिथ १७ जसो १८ दुर्गो १९ सीरदेव २० अभैदेव २१ महेश २२ कालु २३ सोमा २४ सोनपाल २५ कुशलो २६ सहादेव २७ गुलराज इण में गुल राज वि० सं० ११८४ में गोलुग्राम छोड़ नागोर आयने वास कियो उण दिन सुं गुलराज रो परिवार गोलेच्छ कहवाणा। यदि २७ पीढ़ी के ६७५ वर्ष समझा जाय तो वि० सं० ५०९ में खरताजी चोरड़िया विद्यमान था फिर समझ में नहीं आता है कि खरतर लोग पूँट मूट ही वि० सं० ११९२ में जिनदत्त सूरि ने चोरड़िया जाति बनाई, कह कर सभ्य समाज में हँसी के पात्र क्यों बनते हैं ? सल्य कहा जाय तो जिनदत्तसूरि अपने जीवन में बड़ी आफत भोग रहे थे क्योंकि एक ओर तो जिनवल्लभसूरि चित्तौड़ के किले में रहकर भगवान महावीर के पांच कल्याणक के बदले छः कल्याणक की उत्सूत्र प्ररूपना की थी जिससे केवल चैत्यवासी ही नहीं पर खरतरों के अलावा जितने गच्छ उस समय थे के सबके सब इस छः कल्याणक की प्ररूपना को उत्सूत्र घोषित कर दिया था । जिनवल्लभसूरि आचार्य होने के बाद छः मास ही जीवित रहे वह आफत जिनदत्तसूरि पर आ पड़ी थी। और दूसरे जिनदत्तसूरि ने पट्टन में रहकर स्त्री प्रभु पूजा नहीं करे ऐसी मिथ्या प्ररूपना कर डाली इसलिये भी वे मारे मारे भटक रहे थे । तीसरे आपके गुरुभाई जिनशेखरसूरि आपसे खिलाफ हो कर आचार्य बन अलग गच्छ निकाल रहे थे। चोथे आप गृहस्थों से द्रव्य -एकत्र कर अपने चरण स्थापन करवा कर पुजाने का प्रयत्न कर
SR No.032625
Book TitleJain Jatiyo ke Gaccho Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy