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________________ ( २८ ) इस प्रकार ५-७-६-५-८-१०-६-९-९-९-१२-१०-११-१०९-६-७-७ = एवं कुल इन १८ गोत्रों की १४३ शाखाएँ हैं इनके साथ पूर्वोक्त ५२६ मिला दी जायँ तो सब ६६९ जातिएँ उपकेशगच्छपासक हैं और इन सब का गच्छ उपकेश गच्छ ही है। इनके अलावा भी कई जातियाँ हैं कि जिन्हों का फिर समय पाकर उल्लेख किया जायगाः (२) कोरंट गच्छ-यह एक उपकेश गच्छ की शाखा है, इसका प्रादुर्भाव आचार्य रत्नप्रभसूरि के समय हुआ। इस गच्छ के उत्पादक आचार्य कनकप्रभसूरि जो आचार्य रत्नप्रभसूरि के गुरू भाई थे इनकी संतान, कोरंटपुर या इसके आस पास अधिक बिहार करने के कारण कोरंटगच्छ नाम से प्रसिद्ध हुई। इस गच्छ में कनकप्रभसूरि, सावदेवसूरि, नन्नप्रभसूरि, सर्वदेवसूरि और ककसूरि नाम के महाप्रभाविक आचार्य हुए और उन्होंने भी अनेक क्षत्रिय आदि अजैनों को प्रति बोध कर उन्हें जैन बना महाजन वंश की खूब ही वृद्धि की थी। भले ही आज कोरंट गच्छाचार्य भूतल पर विद्यमान न हों पर उन्होंने जैन शासन पर जो महान् उपकार कर यश उपार्जन किया था वह तो आज भी जीवित है। विक्रम सं० १९०० तक तो इस गच्छ के अजितसिंहसूरि नाम के श्रीपूज्य विद्यमान थे और उन्होंने एक बही जब वे बीकानेर आये थे तब आचार्य सिद्ध सूरि को दी थी। बाद में वह बही वि० सं० १९७४ में जोधपुर चातुर्मास में यतिवर्य माणकसुन्दरजी द्वारा दखने का मुझे कई स्थानों में कोरंट गच्छीय महात्माओं की पौशालों तो आज भी विद्यमान है।
SR No.032625
Book TitleJain Jatiyo ke Gaccho Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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